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साम्प्रदायिकता के विरोध में साहित्य राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न


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साम्प्रदायिकता के विरोध में साहित्य राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

अजमेर। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर और अजमेर के प्रबुद्ध मंच के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई। 
उद्घाटन सत्र में दिल्ली से आये प्रसिद्ध वक्ता शायर और वैज्ञानिक मुख्य अतिथि गौहर रज़ा , मुख्य वक्ता प्रिय दर्शन ने सांप्रदायिकता के वर्तमान स्वरूप पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए इसकी चुनौतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। अध्यक्षता प्रसिद्ध मानवधिकार कर्मनेत्री और पीयूसीएल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने की।सत्र का संचालन इस द्विदिवसीय सेमिनार के संयोजक और पीयूसीएल के सचिव डा अनंत भटनागर ने किया।


सांप्रदायिकता विरोध की साहित्यिक परम्परा विषयक पहले सत्र में वक्ताओं के रूप में कवि -शायर सलीम खां फरीद राजस्थान, कहानीकार मनोज कुमार पाण्डेय, इलाहाबाद और दिल्ली से आये विमलेंदु तीर्थंकर ने अर्थवान भागीदारी कर सत्र को समृद्ध बनाया।सत्र का प्रभावी संचालन दौसा के महुआ कालेज में हिंदी प्राध्यापक डा विष्णु कुमार शर्मा ने किया।
विभाजन का दंश और सांप्रदायिकता विषयक दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार और आलोचक डा सूरज पालीवाल ने की। इसमें कवि विजय राही ने इस विषय पर पत्रवाचन किया तथा कवि आलोचक शैलेन्द्र चौहान, कथालोचक और बनास जन पत्रिका के संपादक डा पल्लव तथा हिन्दी और सिंधी के कवि हरीश करमचंदानी ने अपने वक्तव्यों से सत्र को समृद्धि प्रदान की। इस सत्र का संचालन जिला शिक्षा अधिकारी और साहित्यकार कालिंद नंदिनी शर्मा ने किया।



संगोष्ठी के दूसरे दिन देश के विभिन्न भागों से आए साहित्यकारों ने भारत की साझा संस्कृति की वकालत करते हुए देश में एकता व शांति स्थापना के लिए सद्भावना को सबसे आवश्यक बताया।
श्रमजीवी महाविद्यालय में आयोजित इस संगोष्ठी के आज के पहले सत्र में प्रसिद्ध कथाकार गौरीनाथ(दिल्ली) ने कहा कि हिंसा और घृणा किसी भी समाज को स्थायी क्षति पहुंचाते हैं। उन्होंने बिहार में हुई जातीय हिंसाओं को भी साम्प्रदायिकता का एक रूप बताया। जयपुर से आए कवि ओमेंद्र ने धार्मिकता और अंध धार्मिकता में अंतर पहचानने पर बल दिया। वरिष्ठ कवि लेखक सत्यनारायण व्यास ने कहा जो जो धर्म के नाम पर दूसरे धर्म से नफरत सिखाए वह धार्मिक मनुष्य नहीं हो सकता। व्यास ने मिथकों का उदाहरण देकर कहा कि मनुष्यता को नष्ट करने वाली घृणा से दूर रहना पहला कर्तव्य है।कोटा के प्रो संजय चावला ने अंग्रेजी साहित्य तथा मो आदिल ने उर्दू साहित्य में सांप्रदायिकता विरोधी रचनाओं की चर्चा की।सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि व समाजकर्मी महेंद्र नेह ने भगतसिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों की शहादत को याद करते हुए कहा कि इन स्वतंत्रता सेनानियों ने साम्प्रदायिक सद्भाव को देश की एकता के लिए पहली जरूरत बतलाया था।इस सत्र में दौसा के विष्णुकुमार ने प्रियम्वद के कथा साहित्य में सांप्रदायिकता विषय पर पत्रवाचन किया।सत्र का संचालन सिरोही से आई प्रो शची सिंह ने किया।



 दूसरे सत्र में 'सुलगता वर्तमान:हमारी भूमिका' विषय पर जाने माने कवि आलोचक मनु शर्मा ने निजी संस्मरण सुनाते हुए चिंता व्यक्त की कि रोजमर्रा के जीवन में साम्प्रदायिक घृणा का ज़हर फैल रहा है जो देश को नुकसान पहुंचाता है। अलवर से आए सामाजिक वैज्ञानिक डॉ भरत मीणा ने सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रयोग को सौहार्द के लिए घातक बताया। डॉ मीणा ने नागरिक चेतना का निर्माण करने के लिए शिक्षा तथा समाज के हर क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता बतलाई। कहानीकार पराग मांदले ने अफसोस जारी किया कि मूल्यों के क्षरण के इस दौर में चुप्पी है।सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध शिक्षक नेता तथा लेखक मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि अब चुपचाप रहने का समय नहीं है। हमारा देश और समाज घृणा का शिकार बनाया जा रहा है इसका पुरजोर विरोध करना होगा। श्रोत्रिय ने लेखन, सामाजिक कार्यों और अकादमिकी के सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता आंदोलन की राष्ट्रीय विचारधारा के अनुसार सक्रियता बढाने का आह्वान किया। जयपुर की युवा कथाकार व पत्रकार तसनीम खान ने सत्र का संचालन करते हुए तसनीम खान ने सोशल मीडिया पर झूठ व मिथ्या प्रचार पर चिंता जतलाई।
संगोष्ठी के समापन सत्र में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर डा महिमा श्रीवास्तव के कविता संग्रह आस के जुगनू का लोकार्पण किया गया। संग्रह राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित हुआ है।इस सत्र में मुख्य अतिथि व्यंग्यकार फारुख आफरीदी ने कहा कि सम्प्रदायिकता नये नये रूप धरकर हमारे सामने आ रही है जिसका मुकाबला करना होगा।उन्होंने कहा कि संवैधानिक उपचारों से घृणा और हिंसा का मुकाबला किया जा सकता है।
अध्यक्षता करते हुए चंद्रप्रकाश देवल ने राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के उदाहरण देते हुए बताया कि गंगा जमनी तहजीब हमारी विरासत है। देवल ने कहा कि संस्कृतियों के महादेश में साम्प्रदायिकता का कोई स्थान नहीं हो सकता। संगोष्ठी संयोजक डा अनंत भटनागर ने संगोष्ठी प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।इस सत्र का संचालन पूनम पांडे ने किया।



संगोष्ठी में डा श्रीगोपाल बाहेती, डी एल त्रिपाठी,बीना शर्मा,हरप्रकाश गौड़, कालिंद नंदिनी शर्मा,,विनीता जैन गौरव दुबे,विनीता बड़मेरा,संदीप पांडे,लता शर्मा,शकील अहमद,धनराज चौधरी,नरेंद्र चौहान ,सुरेश अग्रवालसहित अनेक गणमान्य नागरिकों ने भागीदारी की। आयोजन स्थल पर दिल्ली के नवारुण प्रकाशन द्वारा पुस्तक और लघु पत्रिका प्रदर्शनी भी लगाई गई।











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