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विश्व साहित्य दिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन









विश्व साहित्य दिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन 

बीकानेर/ मुक्ति संस्था एवं शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में विश्व साहित्य दिवस के अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन रविवार को मुक्ति परिसर ब्रह्म बगीचा में आयोजित की गई।

 कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के कोषाध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने की एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजाराम स्वर्णकार रहे।


     इस अवसर पर नगर के युवा एवं वरिष्ठ साहित्यकारों ने मौलिक काव्य पाठ से उपस्थित श्रोताओं का मन भाव-विभोर कर दिया।


 इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में राजेन्द्र जोशी ने कहा मनुष्यता और नैतिकता का प्रसार साहित्य की भावना होनी चाहिए , जोशी ने कहा कि साहित्य में मानवतावाद और विवेकबुद्धि की बात बखूबी होनी चाहिए, उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण तभी हो सकता है जब संवेदनात्मक साहित्य सृजन हो।


      कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व्यंगकार-सम्पादक डाॅ.अजय जोशी ने विश्व साहित्य दिवस पर रचनाकारों को समर्पित व्यंग्य रचना सुनाई।  


    इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि समाज में बदलाव का संकेत रचनाकार ही दे सकता है,उन्होंने समाज का आह्वान किया कि पढ़ने की आदत युवाओं में विकसित करें।


     प्रारंभ में वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.कृष्णा आचार्य ने विश्व साहित्य दिवस के अवसर ओजपूर्ण प्रस्तुतीकरण देते हुए "मिसरी रो सिट्टो लाई महें, बोलो थे मीठा बोल भाईपो बध जासी" डाॅ. कृष्णा ने मीठी प्रस्तुति देते हुए "खार खाया तो खार बढ़ेला, मीठा बोल्या काम सरेला, बोलो थे इमरत घोल.....
"ऐक कुंख रा जाया भाई, आपस मांहि क्यूँ करो लड़ाई, बोलो थे प्रेम रा बोल"..... की शानदार प्रदर्शन किया।


युवा कवि विप्लव व्यास ने शानदार राजस्थानी रचना ने विश्व साहित्य दिवस समारोह को उच्चाईया देते हुए 
"चरचा चाली जंगल माय 
जानवरां री सभा बुलाई।। 
इये जूण रा तडकिया रेवडा 
पसचिम रे घणियापै मां 
खुली पूण अर आखो आभो 
सुपणा सुखया आख्यां रा 
पूरब रे परभाते ऊभा आपा करसा जातरा थूं म्हारे साथे चाल तो" से वातावरण को उम्दा बना दिया।
  

   कवि जुगल पुरोहित ने लयबद्ध रचना पेश करते हुए "कविता को केवल कविता मत समझो।
कविता शब्द है, स्वर है गीत है। 
कविता में शक्ति है, वर्तमान को
रचने की भविष्य को जानने की 
कविता भूत, वर्तमान व भविष्य की अमिट रेखा है।


ओज गीतकार लीलाधर सोनी ने 
"पिया थारी याद में बीते माँझल रात रे रंग महला उडीके गौरी जोवे थारी बाट रे" प्रस्तुत की।


हास्य कवि बाबू बमचकरी ने 
"आखातीज ने पेच लड़ाया लड़ग्या पेच अपार रे। खने उभा समझ ना पाया समझी ना घर नार रे" ने प्रस्तुत कर खूब वाह वाही लूटी।


   इस अवसर पर साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने "मातृभूमि की चरण वन्दना करते बड़ा हुआ हूँ स्वाभिमान के साथ सभी के सन्मुख खड़ा हुआ हूँ। जब से होश सम्भाला मैंने एक ध्येय अपनाया राष्ट्रधर्म सर्वोपरी जब तक रहे सलामत काया । रोम-रोम में राष्ट्रभक्ति है श्वांस उसी को अर्पित 
यही तीर्थ है, यही तपस्या, जीवन इसे समर्पित" की शानदार प्रस्तुतीकरण से वातावरण को उम्दा बना दिया।


  वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने गुड़कणा डोफा राजस्थानी रचना सुनाई। अंत में मोहम्मद शाबिर ने आभार व्यक्त किया।


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