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शिक्षण व्यवस्था को लगा ग्रहण, स्कूलों में वोटों की राजनीति हावी



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*खबरों में बीकानेर*

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शिक्षण व्यवस्था को लगा ग्रहण, स्कूलों में वोटों की राजनीति हावी

-  हेम शर्मा 

 राजस्थान में स्कूली शिक्षण व्यवस्था में सुधार की कई गुंजाइशें हैं। अगला चुनाव वर्ष होने से शिक्षण व्यवस्था पर राजनीति का ग्रहण लगा हुआ है। शिक्षा विभाग के निर्णय इस बात को ध्यान में रखकर नहीं किए जा रहे हैं कि शिक्षण व्यवस्था कैसे बेहतर हो, बल्कि यह ध्यान रखा जा रहा है की वोटों के राजनीतिक समीकरण कैसे ठीक बने। स्कूलों को क्रमोन्नत कर ग्रामीण क्षेत्रों में लगे शिक्षकों शहरों में लगा दिया। नव क्रमोन्नत स्कूलों में नामांकन की स्थिति देखी नहीं गई। जहां से शिक्षक को हटाया गया हैं वहां तो छात्र संख्या ज्यादा और जहां लगाया गया है वहां छात्र संख्या शून्य या फिर गिनती के हैं।


 स्कूल क्रमोन्नत किए उसके अनुरूप शिक्षक भर्ती नहीं की गई। वहीं महात्मा गांधी विद्यालय खोले गए एक भी शिक्षक की भर्ती नहीं हुई। हिंदी स्कूलों के शिक्षकों को अंग्रेजी स्कूलों में लगा दिया गया। हिंदी स्कूलों की स्थिति पहले स्टाफ कम होने से बदतर थी। अब बद से बदतर हो गई। महिला अध्यापिकाओं को चाइल्ड केयर लीव भी शिक्षण व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है। चाइल्ड केयर लीव के अपने दावे प्रतिदावे हो सकते हैं, परंतु शिक्षण व्यवस्था पर विपरीत असर होगा ही इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। शिक्षा मंत्री जी स्कूल क्रमोन्नत करने, नए स्कूल खोलने और बड़ी संख्या में शिक्षकों का गांवों से शहरों में स्थानांतरण करने के बाद कितने शिक्षकों की भर्ती की है ? 


गांवों में स्कूलों के क्या हालत है ? आप नहीं जानते। एक गांव की स्कूल में 375 बच्चे, एक पी टी आई और तीन शिक्षक है। कैसे पढ़ाई होती होगी। क्या मंत्री जी, स्कूल शिक्षा के सचिव और कमरे में बंद रहने वाले शिक्षा निदेशक बता सकते हैं ? ऐसे प्रदेश में कितने स्कूल हैं ? निदेशालय के पास तो आंकड़े होंगे ही। क्या स्कूली शिक्षा व्यवस्था के प्रति जिम्मेदार मंत्री, निदेशक को पता है कि बिना शिक्षकों वाली स्कूलों में पढ़ने वाले दसवीं के छात्र को ठीक से हिंदी पढ़ना, जोड़, बाकी, गुणा, भाग करना नहीं आता। अध्यापकों के स्थानन्तरण के तौर तरीकों से सरकार की मंशा उजागर हो रही है। 


मंत्री पार्टी के विधायकों की स्थानांतरण में अनुशंसाओं को पूरा करने में लगे हैं। बीकानेर शहर कितने शिक्षकों को गांवों में शिक्षण व्यवस्था को ताक पर रखकर लगाया गया है। यही हालत पूरे प्रदेश में हैं। राजस्थान सरकार को बदतर स्कूली शिक्षण व्यवस्था पर सोचने की जरूरत है। मुख्यमंत्री जी केवल घोषणा से शिक्षा व्यवस्था अच्छी नहीं हो सकती। मानव संसाधन की कमी को पूरा किए बिना सारी घोषणाएं कागजी है। 


विद्या संबल योजना भी कागजी साबित हुई है। भले ही शाला दर्पण अनुभाग जयपुर में चल रहा है। अब वापस निदेशालय स्तर पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। नव क्रमोन्नत व महात्मा गांधी विद्यालयों में पदों का आवंटन नहीं हुआ है। एपीओ अवधि का नियमतिकरण नहीं हुआ है। प्रारंभिक शिक्षा के शिक्षको के पदों की मैपिंग करवाकर बकाया वेतन व्यवस्था नहीं हो पा रही है। अब आप लेक्चर से प्रदेश में 10 हजार वाइस प्रिसिपल के पद भर रहे हैं तो इन लेक्चर के स्थान पर अब कौन पढ़ाएगा ? इनकी जगह लेक्चरर कहां है ? 


विभागीय संवर्ग की बकाया डीपीसी नहीं हुई। स्कूलों के हालत से बदतर विभाग की स्थिति है। शिक्षक संगठनों ने प्रांतीय शिक्षक सम्मेलन के जरिए वास्तविक तस्वीर अभी रखी ही है। मांग रखी गई कि राज्य सरकार की हिन्दी व अंग्रेजी साथ साथ एक ही भवन में चलाने की घोषणा की क्रियान्वित हो। उच्च माध्यमिक विद्यालय में द्वितीय ग्रेड व प्रथम ग्रेड शाशि पद देने,सामाजिक ज्ञान, वाणिज्य, कृषि,उद्योग शिक्षको की पदोन्नति नहीं हो रही है। गैर शैक्षिक कार्यो से शिक्षको को मुक्त करने की मांग शिक्षक संगठन उठाते रहे हैं। पहले से ही स्कूलों में शिक्षकों के पद कम है फिर गैर शैक्षिक कामों का दवाब रहता है। पढ़ाई कैसे होगी ?





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