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नाटक के कथानक में नाटक को ढूंढने की भूख ही अभिनय को निखारती है: कैलाश भारद्वाज


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नाटक के कथानक में नाटक को ढूंढने की भूख ही अभिनय को निखारती है: कैलाश भारद्वाज
 

‘‘ नाटक के कथानक में छिपे असली नाटक को ढूंढने का नाम ही नाटक है। यह भूख ही हमें कुशल अभिनेता बनाती है’’ ये उद्बोधन वरिष्ठ रंगकर्मी कैलाश भारद्वाज ने परम्परा और बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के सह आयोजन में कला-सृजनमाला की छठी मासिक कड़ी के तहत 16 नवंबर को स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा भवन सभागार में आयोजित के तहत ‘ रंगकर्म के आत्मकथ्यात्मक अनुभव कार्यक्रम के मुख्यवक्ता के रूप में सुधि श्रोताओं के समक्ष अभिव्यक्त किए। इस अवसर पर मुख्यवक्ता श्री कैलाश भारद्वाज का माल्यार्पण कर शॉल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर स्वागत किया गया।
अपने वक्तव्य के तहत कैलाश भारद्वाज ने अपने रंगकर्म के अनुभव विभिन्न प्रसंगों, प्रबंधनों, चुनौतियों, संसाधनों की कमी और उनके विकल्प के तरीकों को पीरोकर बहुतही संजीदा संप्रेषण के साथ अभिव्यक्त किए। उन्होंने अपनी बात स्कूली दिनांे में स्कूल के मंच पर नाटक देखने, अभिनय करने और जोर-जोर से कविता पाठ करने से शुरू करते हुए स्वयं द्वारा मंचित एवं निर्देशित प्रमुख नाटकों गिनिपिग, किसी और का सपना, पागलघर, धूर्त समागम, एक शाम और, भूखे नाविक, किमिदम यक्षम आदि को आधार बनाते हुए रंगकर्म में आई चुनौतियों और संसाधनों की कमी और सामाजिक विचारधारा की विपरित परिस्थितियों को सुधिश्रोताओं के साथ सांझा किया। इन अनुभवों से उन्होंने यह संदेश दिया कि कार्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एवं किए गए कार्य की सही समीक्षा हमारे लिए हर चुनौति से पार पाने का मार्ग प्रशस्त कर देती है।
अपनी अभिव्यक्ति में रंगयात्रा में शामिल ओम सोनी, डॉ.श्रीलाल मोहता, राजानंद भटनागर, वागीश कुमार, ओम थानवी, डॉ. नंदकिशोर आचार्य, कन्हैयालाल भाटी, कामेश सहल, शिवरतन थानवी, राकेश मूथा, विनोद भटनागर, पीआर जोशी, मानवेन्द्र बगरहट्टा, रवि माथुर आदि सहयोगी कलाकार साथियों एवं रंगन, आवास विकास संस्थान सहित सहयोगी एवं सहभागी संस्थानों को याद करते हुए बीकानेर के रंगकर्म में उनके योगदान को उल्लेखनीय अवदान बताया। उन्होंने यह भी कहा कि इतनी लंबी यात्रा में सबसे सुखद यह रहा कि किसी भी साथी कलाकार से किसी प्रकार की शत्रुता या प्रतिद्वंद्विता कभी नहीं हुई।  

अध्यक्षीय उद्बोधन के तहत वरिष्ठ रंगकर्मी ओम सोनी ने कहा कि कैलाश जी नाटक मंचित नहीं करते वे तो नाटक को जीते हैं। नाटक के साथ इनका रिश्ता जितना सहज और सरल था उतना ही गहरा और विशिष्ट है।
सान्निध्य उद्बोधन में डॉ. ओम कुवेरा ने कहा कि कला सृजनमाला के आयोजनों में आप सभी सुधिजन इसी प्रकार हमारा उत्साह बढ़ाते रहें।
आगंतुकों के प्रति आभार संस्था परिवार के विनोद भटनागर द्वारा आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
आयोजन में शहर के प्रबुद्धजन एवं रंगकर्मियों सहित संस्था के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने सक्रिय सहभागिता निभाई।


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