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कटुता के भावों का निराकरण का समय पर्युषण- आचार्य विजयराज


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✍️कटुता के भावों का निराकरण का समय पर्युषण- आचार्य विजयराज










कटुता के भावों का निराकरण का समय पर्युषण- आचार्य  विजयराज जी म.सा.

लगातार चल रहे सामूहिक नवकार मंत्र के जाप*
                                                                                                                             बीकानेर। महापर्व पर्युषण के दिन चल रहे हैं। आज के दिन हम अपनी भावनाओं को विकसित करेंगे। हम समाजिक प्राणी हैं, हमारा अनेकों के साथ संबंध है। इन संबंधो में कटुता का भाव पैदा हो जाता है। उसके निराकरण का समय होना चाहिए और वो समय पर्युषण के पावन दिन हैं। इन दिनों में हम मैत्री के भाव पैदा करते हैं। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने शुक्रवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे पर्युषण पर्व पर व्यक्त किये। महाराज साहब ने कहा कि संसार के सभी जीवों के साथ मेरा मैत्री भाव है। क्योंकि मैत्री दो के बीच होती है। एक अकेला व्यक्ति क्या मैत्री करेगा, क्या अमैत्री करेगा। इसलिए हमें अपने मन में जिस किसी के प्रति कटुता के भाव हैं, उन भावों को त्यागने का काम इन दिनों में करेंगे। आचार्य श्री ने कहा कि सब समय सापेक्ष होता है, हमें सबके साथ मैत्री भाव रखना चाहिए। जिनके मन में यह भाव होता है, असल में वही साधक है, वही अराधक है। धर्म कहता है समन्वय किजीए, धर्म कभी नहीं कहता कि विरोध करो, विग्रह करो, विवाद करो। इन पावन दिनों में हम तीर्थकंरो का चरित्र सुनते हैं, जितने भी महापुरुष हुए उनका वर्णन सुनते हैं।
                                                                                                                            आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें अपने दसवें भव में सम्यकत्व की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल गई। महाराज साहब ने कहा कि तीर्थंकर कोई एक जन्म में ही नहीं बन जाता है। इसके लिए कई जन्मों की साधना करनी पड़ती है।
                                                                                                                            पर्युषण पर्व के महत्व को इंगित करते हुए आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने उपस्थित सभी श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि यह पर्व अपनी शत्रुता को नष्ट करने का पर्व है। जो हो रहा है व पूर्व के कर्म फल का परिणाम है, आज भाई-भाई एक दूसरे को अपना दुश्मन समझते हैं। लेकिन याद रखो शत्रुता में कोई सार नहीं है। महाराज साहब ने कहा मित्र कौन और शत्रु कौन.......? , इसका उत्तर देते हुए कहा कि जो हमें सन्मार्ग की ओर ले जाए वह सच्चा और अच्छा मित्र है। आचार्य श्री ने सभी से समन्वय में विश्वास करने की बात कही, उन्होंने बताया कि जैन धर्म , जैन संस्कार और जैन संस्कृति त्याग, तपस्या, साधना और अराधना करने वाला धर्म है। अगर हमारे ही मन में वैर, विरोध, विग्रह का भाव चल रहा है तो फिर हमने अपने धर्म को क्या तो समझा, क्या जाना और क्या धर्म से सीखा है। अपने मन में द्वेष का पता लगाने के लिए हमें आत्म अवलोकन, आत्म निरीक्षण करना चाहिए। महाराज साहब ने श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि आपको पुण्वानी बांधने का अच्छा समय मिला है। चतुर्विद संघ की सेवा करना बहुत बड़े पुण्य का कार्य है। आचार्य श्री ने कहा कि धर्म अराधना का पात्र वही होता है जिसके मन में मैत्री के भाव है, मधुरता है। यह भाव बीकानेर श्री संघ और यहां के श्रावक-श्राविकाओं में बहुत है।


आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने बालपन की अवस्था में वैराग्य भाव जागने और दीक्षा लेने का प्रसंग सुनाते हुए भजन के माध्यम से अपने संसारपक्षीय परिवार और कुल की जानकारी के साथ गुरु के आशीर्वाद का प्रसंग सुनाकर सभा में उपस्थित सभी साधु- महासती एवं श्रावक-श्राविकाओं को भाव-विभोर कर दिया। उन्होंने अपने स्वयं बालपन से गाये जा रहे भजन *‘दीक्षा लूंगा, मुनि बनूंगा , छोड़ जगत- संसार , कहता चेला विजयकुमार , बीकानेर का रहने वाला , मां भंवरी ने मुझको पाला , पूज्य पिताजी है जतनलाला , गौत्र सोनावत जिनके आला , ब्यावर शहर में रंग चढ़ाया , गुरु नानालाल , कहता चेला विजयकुमार*’ और ‘धर्मसभा की शुरूआत में भजन धर्म कहता है समन्यवय किजिए, मोह-ममता, द्वेष का क्षय किजिए, धर्म है कल्याण कारक औषधी, आप आत्मा को निरामय किजिए ’गाकर सुनाया।  
                                                                                                                            *रातभर चल रहा सामूहिक नवकार मंत्र का जाप*
                                                                                                                             श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजय कुमार लोढ़ा ने बताया कि जैन धर्म में तपस्या का बड़ा महत्व है। पर्युषण पर्व पर यह महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इन दिनों में धर्म-ध्यान और साधना एवं अराधना के दौर चल रहे हैं। सुबह से लेकर देर रात तक अनेक धार्मिक क्रियाकलाप जिनमें सामायिक, प्रतिक्रमण, तपस्या, मंत्र जाप और जिज्ञासा एवं उनका समाधान गुरुजनों द्वारा किया जा रहा है। समय की अनुकूलता के चलते निरन्तर दिन रात सामूहिक नवकार मंत्र का जाप श्रावक-श्राविकाओं द्वारा किया जा रहा है।



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