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पर्व पर्युषण आया, बीकानेर में आनन्द छाया, जन-जन में आनन्द छाया- आचार्य विजयराज जी
अपनी आत्मा के पास रहें, अपने कर्मों को क्षय करने का प्रयास करें- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
बीकानेर। ‘सत्य अहिंसा अनेकांत ही जिसका शुभ संदेश है, पर्वराज पर्युषण आया, मंगलमय परिवेश है...मंगलमय परिवेश है। आज बहारें फूल बिछाए, प्रकृति गाए रागिनी, नदियों की कलकल कहती है, पर्वराज पर्युषण आया’ चातुर्मास काल में पर्युषण पर्व हमारे लिए बहुत महत्व रखता है। इन आठ दिनों में हम ज्यादा से ज्यादा अपनी आत्मा के पास रहें और अपने आठ कर्मों को क्षय करने का प्रयास करेंगे। यह भजन और सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज ने पर्युषण पर्व के प्रथम दिन सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने पर्युषण पर्व की महत्ता और इसे लोकोत्तर पर्व किस लिए कहा जाता है। इस पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जिन दिनों की हम प्रतिक्षा कर रहे हैं, आज वे उपस्थित हो गए। पर्युषण महापर्व ज्ञान, अराधना, दर्शन अराधना के दिन है। पर्व दो प्रकार के होते हैं, एक लौकिक और दूसरा लोकोत्तर, पर्युषण पर्व लोकोत्तर पर्व है। इसकी अराधना चतुर्विद संघ जिसमें सभी जैन समुदाय के साधु- साध्वियां, श्रावक-श्राविकाऐं करते हैं। महाराज साहब ने कहा कि हम भगवान महावीर के शासन में चल रहे हैं। स्वयं भगवान महावीर ने पर्युषण पर्व की अराधना की ओर उन्हीं के आधार पर चतुर्विद संघ इसकी अराधना करता है। इन सात दिनों में निरन्तर आगम, संतो की वाणी , सामायिक सहित धार्मिक क्रियाऐं करते हैं। यह आत्म शुद्धी का कार्य होता है। महाराज साहब ने कहा कि वैसे तो श्रावक वर्ष भर परिवार, व्यापार, संबंधी क्रियाओं में लगा रहता है, इस दौरान आदमी का आत्मा से ध्यान छूटा रहता है। लेकिन आत्मशुद्धी आवश्यक है, अगर हम आत्मा का ध्यान, चिंतन करते हैं, आत्मा से जुडक़र जीवन चलाते हैं तो हमारे कर्म उसी तरह से होने लगते हैं।
पर्युषण की महत्ता बताते हुए महाराज साहब ने कहा कि आज के दिन जिसने आत्मा को जगाया, उनका इतिहास बना है। उन्होंने नरवीर राजकुमार के माध्यम से एक प्रसंग सुनाकर पर्युषण के प्रथम दिन की उपवास की महिमा और उससे मिलने वाले फल की जानकारी श्रावक-श्राविकाओं को दी।
पर्युषण क्यों और किसलिए पर महाराज साहब ने कहा कि इन दिनों में संतो के सानिध्य में अराधना करने से, धर्म-ध्यान करने से, सामायिक और जिनवाणी का श्रवण करने का लाभ मिलता है। साथ ही शरीर आसक्ति, परिवार की, धन- सम्पदा की आसक्ति से हम जकड़े रहते हैं, उन आसक्तियों के जाल को काटने के दिन पर्युषण के दिन होते हैं।
श्रावकों का जत्था पहुंचा बीकानेर
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के दर्शनार्थ और उनके मुखारविन्द से जिनवाणी का लाभ लेने के लिए सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में बुधवार को बाहर से आए श्रावकों की कतारें लगी रही। उदयपुर, चैन्नई, कोयम्बटुर, मैसूर, बहरोड़, बैंगलुरु, इन्दौर और उदयपुर, अजमेर सहित विभिन्न स्थानों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंची। जिनका संघ की ओर से स्वागत किया गया।
पर्युषण पर्व चालीसा का किया वाचन
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में मुनियों एवं महासती के साथ सैंकड़ो श्रावक-श्राविकाओं ने सात्विक एवं शांत वातावरण में एक साथ एक स्वर में सामूहिक पर्युषण पर्व चालीसा का वाचन किया।
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