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बीकानेर : अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर सेवा का जज्बा पलता है

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 📝   ✍️ अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर सेवा का जज्बा पलता है
बीकानेर। रात के अंधेरे में जब सारा शहर सोता है,उस वक्त सूनी सड़कों पर कुछ अलग सा हो रहा होता है। कोई भूख लेकर अपनी सो ना जाए, हमारे रहते कुछ ऐसा हो ना जाए, इसी जज्बे को लेकर एक समूह मूक जानवरों को अन्न की सेवा दे रहा होता है। यह समूह एक ऐसा समूह है जो पुण्य पाने की लालसा को लेकर नहीं बल्कि अपना कर्म समझकर कार्य कर रहा होता है। यहां मानवता से साक्षात्कार कराने वाले लोगों की बात महज इसलिए की जा रही है कि वे ना तो वो पैसों से ज्यादा अमीर हैं और ना ही उनके लबे-चौड़े कारोबार हैं। लेकिन फिर भी वे अपनी मेहनत का एक हिस्सा मूक जानवर जिनमें गाय, गोधे और श्वान शामिल हैं पर खर्च करते हैं।
यहां बात की जा रही है दषाणियों का चौक निवासी गोपीकिशन अग्रवाल और उनकी पूरी १३ सदस्यों की टीम में शामिल अनिल, विनय, डालचंद, लालचंद, रवि, सूरज, माणक, जॉनी, चेनाराम, बजरंग, रामचन्द्र और आनंद की जो आनंदपूर्वक हथाई करते हुए पहले तो पूरे बीस किलो बाजरी के आटे से करीब ३५० रोटियां बनाते हैं। यह सदस्य ना तो किसी पूर्णिमा और ना ही अमावस्या का इंतजार करते हैं इसके बाद अलग-अलग दल बनाकर आसपास के क्षेत्र में विचरण करने वाले गाय-गोधों और श्वानों के लिए खाना लेकर निकलते हैं। इतना ही नहीं श्वानों के बच्चे इन्हें खाने में सक्षम नहीं होते हैं तो उनके लिए गुड़ डालकर चूरमा बनाते हैं और प्रेमपूर्वक खिलाते हैं। इसे सेवा का जज्बा ही कहा जाना चाहिए कि यह लोग निरंतर अक्टूबर माह के आरंभ से लेकर फरवरी माह के अंतिम तारीख तक एकाकार होकर पिछले आठ सालों से यह कार्य कर रहे हैं।
टीम लीडर गोपीकिशन अग्रवाल से जब इस बारे में पूछा गया कि वे यह सेवा किसलिए और क्यों कर रहे हैं तो इसके पीछे का मर्म समझ में आया। हुआ यूं कि गोपीकिशन अग्रवाल जो कि पेशे से एक हॉकर हैं और सुबह जल्दी उठकर घरों में अखबार डालने का काम करते हैं। वर्ष २०१३ की एक अलसुबह उन्होंने देखा कि एक निराश्रित गाय ठण्ड से कांप रही थी और वह भूखी भी थी। तब उनके मन में खयाल आया कि इन्हें ठण्ड से बचाने और भूख मिटाने के लिए कुछ कार्य करना चाहिए। तब चौक में बैठे सभी साथियों से चर्चा करते हुए उन्होंने पूरा किस्सा सुनाया। सभी ने इस पर अफसोस जताते हुए सुझाव दिया कि यूं ही ना रात के समय जब सब काम-धाम कर हथाई पर बैठते हैं तो इस समय का उपयोग निराश्रित पशुओं की सेवा में लगाया जाए। फिर तय कार्यक्रमानुसार बाजरे की रोटी बनाने और वितरण करने का निर्णय लिया गया। बाजरे की रोटी भी इसलिए कि इससे पशुओं के शरीर में गर्मी बनी रहे। तब से लेकर अब तक निरन्तर सेवा का कार्य चल रहा है। देखने और सुनने वालों के लिए प्रेरणा का काम ✍🏻




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