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राजस्थानी भाषा और साहित्य की अपनी ही संस्कृति और परंपरा है जो साहित्यप्रेमियों को एक सूत्र में बांधती है : प्रो. एच. डी. चारण, कुलपति विश्वविद्यालय

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 🙏 मोहन थानवी 🙏




 
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यूके गैलेक्सी ऑफ़ स्टार में कवि कलरव राजस्थानी कवि सम्मेलन आयोजित

 

राजस्थानी भाषा और साहित्य की अपनी ही संस्कृति और परंपरा है जो साहित्यप्रेमियों को एक सूत्र में बांधती है : प्रो. एच. डी. चारण, कुलपति विश्वविद्यालय

 

राजस्थानी साहित्य और संस्कृति की अपनी अलग ही एज परंपरा हैं इसका ऐतिहासिक आकलन जितना किया जाए उतना ही कम है, यह कारण है कि राजस्थानी साहित्य राजस्थानी कवियों की पहली पसंद है। यह हमें हमारी परंपरा से जुड़ने का मौका प्रदान करती है और काव्य रस की असीम अनुभूति प्रदान करती है।राजस्थानी काव्य की समृद्धशीलता का का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि हर राजस्थानी इस काव्य का मुरीद है। बिकानेर तकनीकी विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. एच. डी. चारण ने बतौर मुख्य अतिथि यूके गैलेक्सी ऑफ़ स्टार में कवि कलरव राजस्थानी कवि सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपने उद्बोधन में श्रोताओं को संबोधित किया। मुख्य अतिथि चारण ने स्वयं को बेहतर श्रोता बताते हुये राजस्थानी भाषा के शब्द, गहराई तथा समृद्धता के बारे में विचार प्रस्तुत किये तथा डिंगल भाषा को आगे किस तरह बढाया जाये, उसके बारे में बात की। उन्होंने शिक्षा और साहित्य को गठजोड़ बताते हुए कहा कि हर शिक्षा साहित्य की उपज है और इसे आगे बढ़ाना होगा।

 

नव वर्ष के अवसर पर ऑनलाइन राजस्थानी कवि सम्मेलन में अपने आप में एक ऐतिहासिक जलसा रहा जिसमें राजस्थानी भाषा संस्कृति साहित्य और परंपरा से जुड़े सभी कवियों ने सभी रसों से अलंकृत अपनी कविताएँ ,गीत, ग़ज़ल , छंद,मुक्तक आदि प्रस्तुत किए। यह जलसा दो दिवसीय रहा।

 

प्रथम दिन के मुख्य अतिथि श्रीमान ओंकार सिंह जी लखावत तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष भगवान लालजी सोनी थे इतने व्यस्तता के बावजूद तीन घंटे पूरी सक्रियता के साथ जुड़ने के लिए इन दोनों का आयोजन समिति दुवारा बहुत बहुत धन्यवाद ज्ञापित किया गया।इससे पर राजस्थानी साहित्य के विख्यात साहित्यकारों ने अपने काव्य के माध्यम से कवि सम्मेलन का समा बांधा।

 

अध्यक्ष संबोधन में राजेन्द्र जी रत्नू ने ने भी कवि तथा कविताओं में रुचि दिखाते हुये प्रवासियों के लिये स्वलिखित चार पंक्तियाँ कही-अपनी धरती भलें ही छोडकर रहो,पर उनसे नाता जोडकर रहो। अपनी धरा से दूर मत अकड के रहो, अपनी जड़ों को सदा पकड के रहो।इसके माध्यम से उन्होंने बहुत कुछ कह दिया।कविता की शक्ति बताते हुये बताया कि कविता सकारात्मकता और कलात्मकता दोनों को बढावा देती है।




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