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कठोपनिषद पर विशेष व्याख्यान
अपने में व्याप्त परमतत्व को पहचाने
बीकानेर, 5 जनवरी । आर्ट आॅफ लिविंग के स्थानीय चैप्टर के तत्वावधान में गंगाशहर रोड की ट्रांसपोर्ट गली के खतूरिया सत्संग भवन मंे गुरुदेव श्रीश्री रवि शंकरजी की सुशिष्या सूरत प्रवासी बीकानेर मूल की सुधा मालू का कठोपनिषद पर सात दिवसीय विशेष व्याख्यान के तीसरे दिन रविवार को कहा कि अपने में व्याप्त परम तत्व को पहचाने। राग, द्वेष व भय का त्याग कर साधना, आराधना व भक्ति में लगे।
उन्होंने श्रीश्री रवि शंकरजी द्वारा भाष्य कठोपनिषद में यमराज व नचिकेता संवाद के माध्यम से कहा कि परमतत्व की प्राप्ति के लिए घर परिवार छोड़कर संन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है। परिवारिक जीवन जीते हुए भी हम परमतत्व को प्राप्त कर सकते है। उन्होंने कहा कि जीवन ध्वनि व प्रकाश से प्रभावित है। सिनेमा में प्रोजेक्टर से निकलने वाले प्रकाश व ध्वनि से रूपहले पर्दे पर विभिन्न किरदार दिखाई देते है, इसी तरह जीवन में परिवारिक, सामाजिक व आर्थिक जगत के संबंध बनते है तथा एक समय के बाद बिछुड़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि जो गहन ध्यान में रहते है उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता। साधु-संन्यासी घोर तपस्याएं, साधना व आराधना जीवन-मृृत्यु के रहस्य को जानने व परमतत्व को पाने के लिए करते हैं। राग-वासनाओं से वसीभूत संन्यासी भी परमत्व को प्राप्त नहीं कर सकता वहीं राग-द्वेष,वासना व भय से मुक्त गृहस्थ भी साधना, आराधना व भक्ति से परमतत्व को प्राप्त कर सकता है।
गुरुदेव श्रीश्री रविशंकरजी की ओर से भाष्य किए गए कठोपनिषद की व्याख्या में कहा कि सम्पूर्ण संसार मृत्यु से भागता है क्योंकि मृृत्यु तो सर्वस्व छीन लेती है। परन्तु जो व्यक्ति मृृत्यु के समक्ष सहर्ष खड़ा होना स्वीकार कर लेता है वह मृृत्यु से भी कुछ पा लेता है। कठोनिषद में बालक नचिकेता और यमराज के बीच संवाद है। बालक नचिकेता यमराज के पास जाता है और उन दोनों में अद्वितीय संवाद घटता है। उसी का वर्णन कठोपनिषद मंें है। गुरुदेव ने अपने भाष्य के माध्यम से गहन रहस्यों को जीवन की वास्तविक परिस्थितियां के परिसर में बिठा अर्मूत बोध को जीवंत सत्यता प्रदान कर दी है। व्याख्यान 8 जनवरी तक पोने छह बजे से रात आठ बजे तक चलेगा।
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