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कठोपनिषद पर विशेष व्याख्यान : मृृत्यु का ज्ञान ही जीवन को वरदान





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कठोपनिषद पर विशेष व्याख्यान शुरू
मृृत्यु का ज्ञान ही जीवन को वरदान
बीकानेर, 3 जनवरी । आर्ट आॅफ लिविंग के स्थानीय चैप्टर के तत्वावधान में शुक्रवार को गंगाशहर रोड की ट्रांसपोर्ट गली के खतूरिया सत्संग भवन मंे गुरुदेव श्री रवि शंकरजी की सुशिष्या सूरत प्रवासी बीकानेर मूल की सुधा मालू का कठोपनिषद पर विशेष व्याख्यान शुरू हुआ। व्याख्यान 10 जनवरी तक पोने छह बजे से रात आठ बजे तक चलेगा।
शुक्रवार को उन्होंने गुरुदेव श्रीश्री रविशंकरजी की ओर से भाष्य किए गए कठोपनिषद की व्याख्या में कहा कि सम्पूर्ण संसार मृत्यु से भागता है क्योंकि मृृत्यु तो सर्वस्व छीन लेती है। परन्तु जो व्यक्ति मृृत्यु के समक्ष सहर्ष खड़ा होना स्वीकार कर लेता है वह मृृत्यु से भी कुछ पा लेता है। मृृत्यु का ज्ञान ही जीवन को वरदान है। कठोनिषद में बालक नचिकेता और यमराज के बीच संवाद है।  बालक नचिकेता यमराज के पास जाता है और उन दोनों में अद्वितीय संवाद घटता है। उसी का वर्णन कठोपनिषद मंें है। उपनिषद का अर्थ है गुरु के सान्निध्य में बैठना। गुरुदेव ने अपने भाष्य के माध्यम से गहन रहस्यों को जीवन की वास्तविक परिस्थितियां के परिसर में बिठा अर्मूत बोध को जीवंत सत्यता प्रदान कर दी है।
उन्होंने कहा कि राग, द्वेष व भय के कारण जीवन को अगला जन्म मिलता है। जीवन में जन्म जन्मांतरों के कर्म बंधन साथ चलते है। इस जीवन में पूर्व जन्मों के बंधन को काटने के लिए साधना,आराधना व प्रभु भक्ति करें। पाप कर्मों से बचे तथा पुण्यकर्मों का संचय करें। हम जैसा कर्म करेंगे फल उसी के अनुसार मिलेगा।  जीवन में सुख-दुख भ्ी कर्माें के अनुसार ही मिलते हैै । कर्मों का फल प्राणी को अवश्य भोगना पड़ता है किसी कर्म का जल्दी तो किसी का देर से। जीवन में जो भी अच्छे बुरे कर्म जाने-अन्जाने में कर रहे है या हो रहे है उनमें सजगता आवश्यक है। हमें कर्म संन्यास लेते हुए मैं कुछ नहीं कर रहा परमात्मा की रजा के अनुसार या ’’जेही विधि राखे राम’’ की उक्ति के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए। मृृत्यु का भय इस तरह रखना चाहिए कि हमारे गर्दन पर मृृत्यु की नंगी तलवार लटक रही है, न जाने कब सर कलम हो जाए। जितनी जिन्दगी है उसका सदुपयोग, सत्कर्म, सत्संग व सद््कार्यों से करें।




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