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खबरों में बीकानेर 🎤 🌐
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नरोत्तमदास स्वामी की
116 वीं जयन्ती के अवसर पर डॉ.
सत्यनारायण स्वामी एवं डॉ. लक्ष्मी शर्मा
द्वारा संकलित एवं संपादित संख्यात्मक
पदार्थ - कोश (स्मृति ग्रंथ) तथा डॉ. रेखा
स्वामी द्वारा विरचित प्रो. नरोत्तमदास
स्वामी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नामक
ग्रंथों का लोकार्पण समारोह
बीकानेर । हिन्दी विश्व
भारती अनुसंधान परिषद व सरस्वती
काव्य एवं कला संस्थान के संयुक्त
तत्वावधान में स्व. नरोत्तमदास स्वामी की
116 वीं जयन्ती के अवसर पर डॉ.
सत्यनारायण स्वामी एवं डॉ. लक्ष्मी शर्मा
द्वारा संकलित एवं संपादित संख्यात्मक
पदार्थ - कोश (स्मृति ग्रंथ) तथा डॉ. रेखा
स्वामी द्वारा विरचित प्रो. नरोत्तमदास
स्वामी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नामक
ग्रंथों का लोकार्पण समारोह आयोजित
किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि एवं
लोकार्पणकर्ता मानव प्रबोधन प्रन्यास
शिवबाड़ी के अधिष्ठाता पूज्य स्वामी
सोमगिरी महाराज ने कहा कि इन ग्रंथों में
बीकानेर ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत की
संस्कृति परिलक्षित होती है। इससे पूर्व
हिन्दी विश्व भारती के मानद सचिव डॉ.
गिरिजाशंकर शर्मा ने मंचस्थ अतिथियों
एवं आगुन्तक विद्वानों का स्वागत करते
हुए कहा कि प्रो. नरोत्तमदास स्वामी
राजस्थानी ही नहीं अपितु हिन्दी भाषा के
भी मूर्धन्य विद्वान थे जिन्होंने राजस्थानी
तथा हिन्दी भाषा के विभिन्न शब्दों की
व्युत्पत्ति का गहन अध्ययन किया था। डॉ.
सत्यनारायण स्वामी व डॉ. लक्ष्मी शर्मा
द्वारा संपादित तथा डॉ. रेखा स्वामी द्वारा
विरचित ग्रंथ साहित्य एवं शोधार्थियों का
मार्गदर्शन करेंगे। समारोह के
संचालनकर्ता, मुख्य वक्ता व विशिष्ट
अतिथि का दायित्व एक साथ संभालते
हुए डॉ.ब्रजरतन जोशी ने कहा कि कोश
किसी भी ज्ञान अनुशासन के प्रवेश द्वार
होते है उन्होंने कोष व कोश दोनों शब्दों
की व्युत्पति पर चर्चा की और बताया कि
कोश शब्द 1950 के बाद शब्दकोश के
लिए रूढ़ हो गया है। ग्रंथ पुस्तक के
संपादक डॉ. सत्यनारायण स्वामी ने कहा
कि महापुरूष वे नहीं जो अपना नया पंथ
बनाता है अपितु आज हम जिसको याद
कर रहे है उन्होंने अपना पंथ स्वयं बनाया
तथा अपने ज्ञान के प्रकाश से सभी को
प्रकाशमान किया है। नरोत्तमदास स्वामी
के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित ग्रंथ
को विरचित करने वाली डॉ. रेखा स्वामी
ने बताया कि मैं उन सभी महानुभावों को
धन्यवाद ज्ञापित किया जिन्होंने ग्रंथ को
लिखने में सहयोग प्रदान किया। समारोह
की अध्यक्षता करते हुए डॉ. मदन
केवलिया ने कहा कि नरोत्तमदास जी
जैसी विभूति शताब्दियों में एक होती है।
स्वामी जी कहते थे कि अलंकार केवल
मात्राओं की होनी चाहिए स्वरों की नहीं।
स्वामी जी ने राजस्थासनी के काव्य रूपों
का विस्तृत वर्णन किया है। केवलिया ने
कहा कि मेरे जीवन में तीन विभूतियों का
प्रमुख स्थान रहा है जिनमें स्व. विद्याधर
शास्त्री, प्रो. नरोत्तमदास स्वामी तथा श्री
शंभुदयाल सक्सेना है। समारोह में हिन्दी
विश्व भारती के मानद सचिव डॉ.
गिरिजाशंकर शर्मा व सरस्वती काव्य एवं
कला संस्थान के अध्यक्ष अरविन्द ऊभा
ने उपस्थित विद्वानों व महानुभावों का
आभार व्यक्त किया।
📒 📰 📑 पढ़ना और पढ़ाना जीवन सफल बनाना 📚 📖 📓
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