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राम कथा :: दया धर्म का मूल है- साध्वी जी





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                    दया धर्म का मूल है- साध्वी जी
    दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में राजस्थान पब्लिक स्कूल के सामने, सेक्टर-7 तिकोना पार्क, मुक्ता प्रसाद, बीकानेर में कामधेनु गोशाला हेतु आयोजित सात दिवसीय श्री राम कथामृत के  पंचम दिवस में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या एवं कथाव्यास साध्वी विदूषी कथाभास्कर सुश्री सुमेधा भारती जी ने बताया गोस्वामी जी द्वारा रचित महाकाव्य श्री रामचरितमानस में निहित शबरी प्रसंग के प्रस्तुत करते हुये जन मानस को प्रभु श्री रामचन्द्र जी के जीवन में निहित आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत कराया। स्वामी जी ने अपनें प्रवचनों मे बताया कि दया धर्म का मूल है, पाप का मूल अभिमान है। ओर मानव जाति के पतन का मुख्य कारण अभिमान है। एवं शबरी के जीवन की कथा बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि शबरी घर त्याग कर गुरुदेव मातंग-मुनी की शरण में चली जाती है। गुरुदेव उसे ब्रह्मज्ञान से दिक्षित करते है। ओर उसे ध्यानावस्था में बिठा देते है।
साध्वी जी ने  बताया कि प्रभु श्री राम की दिव्यय लीलाओं का तत्समय प्रयोजन तो था ही आज वर्षोपरांत भी हमारे लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है जिससे हमारे जीवन का मार्ग दर्शक हो सके अतएव श्रीराम जी के जीवन की लीलांए हमारे लिए खास महत्व इसलिए रखती हैं क्योंकि उनसे हमारी संस्कृति और लोक व्यवहार जुड़ा हुआ है। प्रत्येक मानव सुखद जीवन की अभिलाषा मन में लिए निंरतर गतिशील रहता है। गति ही तो जीवन है। किन्तु अर्वाचीन समय में मानव मन व माया को पतिनिधि बना कर आगे बढ़ने की कोशिश में है। वह आगे बढ़ा अर्थ के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में। भौतिक संसाधनों की उस के पास कोई कमी नहीं है। बस कमी है उनका उपयोग करने वाली सद्दिशा की। नेत्र तो उसके पास है, लेकिन नेत्र ज्योतिके बिना। गाड़ी तो बडी अच्छी है लेकिन बिना दिशा सूचक यंत्र के बिना। दिशा के अभाव में आज भौतिक संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है। प्रश्न यह है मनुष्य को सद्दिशा को बोध कौन करवाएगा? कौन उसे उत्थान के उच्च शिखरों तक पहुंचाएगा? यह केवल आत्मा के आलोक से ही संभव है। आत्म जाग्रति का आधार अध्यात्म ज्ञान है।
    अंतः करण से सो रहे मानव को झकझोर कर उठाने के यूँ तो अनेकों स्तर पर अनेकों प्रयास हुए और हो भी रहे हैं। लेकिन सुखद परिणाम हस्तगत नहीं हो रहे । क्योंकि उठने की विधि सही नहीं है। विधि सही न होने पर सफलता हाथ कैसे लग सकती है। हर सोए हुए मानव को जगाने की एक विशेष विधि है। वह है ब्रह्मनिष्ठ, अध्यात्मविद् पूर्ण सद््गुरु । सद्गुरु मानव को देह की कारा से मूक्त कर आत्मिक जाग्रति के आलोक में प्रवेश करवा देते हैं। इसी आलोक में निमग्न हो ध्यान की गहराई में उतर कर मानव का आत्मिक उत्थान होता है और अतएव सर्वांगीण विकास हेतु मानव को भौतिक उन्नति से पूर्व ब्रह्मनिष्ट गुरु की शरण प्राप्त कर, आत्मिक उन्नति को प्राथमिकता देनी चाहिए। यही जीवन की सफलता का आधार है। समागम में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या सद्या भारती, अखण्ड़ ज्योति भारती, जी ने श्री राम जी के जीवन एवं लीलांओं में निहित अध्यात्मिक रहस्यों को उजागर किया।
आज के अवसर पर माणक जी गहलोत जो की आज प्रभु के पावन चरनों में यजमान के रूप में अपने सपरिवार पूजन में भाग लिया, राजेश जी चूरा, श्री अरविन्द जी मिढ्ढा, ड़ॉ. मेघना शर्मा, श्री रवि कथूरिया जी, एवं बीकानेर की मीडिया से प्रबुद्ध पत्रकार श्री भवानी जोशी जी, श्याम जी मारू, दिनेश जोशी जी, जयनारायण मिश्रा, मनोज कुमार तिवारी, श्री गणेश सिंह, योगेन्द्र जी दाधीच जी एवं सुरेश जी दाधीच जी प्रभु के पावन चरनों में दीपप्रज्ज्वलित करके प्रभु का आशीर्वाद ग्रहण किया।







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