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मायड़ भाषा मान्यता की आरजू : कमल रंगा / सूरज फेर ऊगैला पर विमर्श होगा, राज्य स्तरीय साहित्य संगम 30-31 को

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( राज्य स्तरीय साहित्य संगम 30-31 को ) 
मायड़ भाषा मान्यता की आरजू : कमल रंगा 
सूरज फेर ऊगैला पर विमर्श होगा

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( राज्य स्तरीय साहित्य संगम 30-31 को ) 
मायड़ भाषा मान्यता की आरजू : कमल रंगा 
सूरज फेर ऊगैला पर विमर्श होगा

बीकानेर। प्रज्ञालय एवं
राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा 30
एवं 31 मार्च को दो दिवसीय 'साहित्य
संगम' राज्य स्तरीय आयोजन वरिष्ठ कवि कथाकार
कमल रंगा की अध्यक्षता में स्थानीय
नालन्दा पब्लिक सी सै. स्कूल के सृजन-
सदन में शाम 5:30 बजे रखा गया है।
 दोनों आयोजन
राजस्थान स्थापन दिवस को समर्पित
रहेंगे। आयोजन के दूसरे दिन 31 मार्च
को राज्य स्तरीय 'पुस्तक से
मिलिए' कार्यक्रम 
जोधपुर के कवि कथाकार वाजिद हसन
काजी के नव काव्य संग्रह 'सूरज फेर
ऊगैला' पर केन्द्रित होगा। जबकि प्रथम दिन 'कवि बनाम कविता' 
कार्यक्रम के तहत हिन्दी राजस्थानी एवं
उर्दू के कवि शायर मां,
मातृभाषा एवं मातृभूमि पर केन्द्रित अपनी हालिया रचित नवीनतम काव्य-
रचना की प्रस्तुति देंगे।  पुस्तक सूरज... पर
विस्तृत आलोचनात्मक पत्र वाचन युवा
कवि संजय आचार्य वरूण करेंगे। इसी
तरह काजी की चुनिन्दा रचनाओं पर
पाठकीय टीप डॉ कृष्णा आचार्य, वली
मोहम्मद गौरी, कासिम बीकानेरी एवं
राजेन्द्र स्वर्णकार प्रस्तुत करेंगे। कार्यक्रम
के सहप्रभारी शिवशंकर भादाणी एवं
गिरिराज पारीक ने कहा कि संस्थाओं द्वारा
आयोजित होने वाले साहित्य के
आयोजनों के माध्यम से पाठक 
संस्कृति के साथ-साथ आलोचना विधा
को बल मिलता है। साथ ही नई पीढ़ी 
और युवा रचनाकारों को नव अवसर के
साथ अपनी बात कहने का और अपनी
समृद्ध परम्परा को समझने का मौका
मिलता है। विदित है कि संघ वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा जी के मार्गदर्शन में वर्षों से राजस्थानी भाषा को राज्य की दूसरी राजभाषा घोषित करवाने व संवैधानिक मान्यता के लिए आंदोलनरत है। 

एक ही आरजू : मायड़ भाषा को मान्यता मिले - कमल रंगा
बीकानेर । मायड़ भाषा मान्यता के लिए बीते 4 दशक से आंदोलनरत राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रदेशाध्यक्ष कमल रंगा का कहना है कि  साहित्यिक आयोजन करने के पीछे हमारी एक ही तमन्ना  है की करोड़ों कंठों की मीठी मायड़ भाषा को शीघ्रताशीघ्र संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो जाए।  इसी आरजू को लेकर संगठन वर्षपर्यंत विविध साहित्यिक आयोजन  करता रहता है।  वर्ष भर में 30 से 35 आयोजनों की श्रंखला चलाई जाती है । इन आयोजनों में सर्वाधिक रचनाकार राजस्थानी भाषा की अपनी रचनाओं से पाठक श्रोताओं सहित साथी रचनाकारों को लाभान्वित करते हैं। पुस्तक से मिलिए आयोजन भी ऐसा ही एक कार्यक्रम है जिसमें राजस्थान के विभिन्न अंचलों में जो राजस्थानी भाषा की विभिन्न विधाओं की पुस्तकें रची जा रही है उन पर राजस्थानी साहित्यकारों के साथ-साथ राजस्थानी पाठकों के बीच भी चर्चा की जाती है।


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