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जैतून में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं - कुलपति

जैतून में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं-कुलपति

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जैतून में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं-कुलपति
एसकेआरएयू: ‘फसल कटाई के पश्चात् जैतून का प्रबंधन एवं मूल्य संवर्धन’ विषयक कार्यशाला प्रारम्भ
बीकानेर, 8 जनवरी। गृह विज्ञान महाविद्यालय के सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र में ‘फसल कटाई के पश्चात् जैतून का प्रबंधन एवं मूल्य संवर्धन’ विषयक कार्यशाला का पहला चरण मंगलवार को प्रारम्भ हुआ।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा थे। उन्होंने कहा कि जैतून की पत्तियों, फल और तेल में अनेक गुण हैं तथा इनमें मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं हैं। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले किसानों, युवा वैज्ञानिकों तथा विद्यार्थियों को इन संभावनाओं को समझना तथा नवाचार करने होंगे। उन्होंने कहा कि गृह विज्ञान महाविद्यालय भी इस दिशा में पहल करे। 
गृह विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डाॅ. दीपाली धवन ने कहा कि पिछले लगभग एक दशक से राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में जैतून की खेती की जा रही है। जैतून में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं तथा औषधीय मूल्य होने के कारण यह अधिक उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि इसकी खूबियों को अधिक से अधिक सांझा करें तथा मूल्य संवर्धन के लिए समन्वित प्रयास किए जाएं। विश्वविद्यालय के पूर्व अनुसंधान निदेशक डाॅ. गोविंद सिंह ने कहा कि प्रशिक्षणार्थी, यहां से प्राप्त ज्ञान का व्यावहारिक जीवन में उपयोग करें। 
कार्यशाला प्रभारी डाॅ. विमला डुकवाल ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत आयोजित इस प्रशिक्षण का पहला चरण 11 जनवरी तक चलेगा। उन्होंने प्रशिक्षण के उद्देश्यों के बारे में बताया तथा महाविद्यालय द्वारा तैयार जैतून की चाय, बिस्किट, टाॅफी, पिज्जा, खाखरा, अचार एवं अन्य उत्पादों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण का दूसरा चरण 14 जनवरी से प्रारम्भ होगा। 
इस अवसर पर कुलपति ने विश्वविद्यालय के खाद्य एवं पोषण विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों ‘जैतून की उपयोगिता एवं मूल्य संवर्धन’ तथा ‘आॅलिव टी’ का विमोचन किया। खाद्य एवं पोषण विभाग की वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता डाॅ. नम्रता जैन ने जैतून के विभिन्न उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया। विभागाध्यक्ष डाॅ. मधु गोयल भी बतौर अतिथि मौजूद रहीं।
इस दौरान प्रसार शिक्षा निदेशक डाॅ. एस. के. शर्मा, भू सुदृश्यता एवं राजस्व सृजन निदेशालय के निदेशक डाॅ. सुभाष चंद्र, डाॅ. रूपम गुप्ता, ममता विश्नोई सहित विभिन्न कृषि वैज्ञानिक, किसान तथा विद्यार्थी मौजूद थे।


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