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युगपक्ष : पहली बार बाहर मुखबंदी अंदर दमका मुखड़ा

विधानसभा भवन : पहली बार बाहर मुखबंदी अंदर दमका मुखड़ा 🤔, हो गई मायड़ भाषा मान्यता की पैरवी !


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विधानसभा भवन : पहली बार बाहर मुखबंदी अंदर दमका मुखड़ा 🤔, हो गई मायड़ भाषा मान्यता की पैरवी !

राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए करोड़ों राजस्थानियों के दीर्घ संघर्ष को कौन नहीं जानता ? मगर जनप्रतिनिधियों ने इस ओर से आंखें फेर रखी हैं। पूर्व में कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल में विधानसभा में संकल्प पारित किया था तबसे हर राजस्थानी अपने दिल में उम्मीदें पाले चुनावों में भाजपा - कांग्रेस के हर उम्मीदवार की ओर आशा से देखता रहा है। ऐसे नेताओं ने भी भरोसे के प्याले बहुत पिलाए और आमजन के बीच "इस बार जरूर" का सुरूर चढ़ाया। मगर अफसोस, जन-जन के बीच बहुत बोले लेकिन सदन में बैठे रहे बिना मुंह खोले !! इस बार विधायक निर्वाचित होने के बाद पहली बार राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने की मांग के साथ मुंह पर पट्टी बांधकर बिहारीलाल बिश्नोई विधानसभा भवन के सामने तक पहुंचे ।  यूं उन्होंने विधानसभा-सचिव को पत्र लिखकर मायड़ भाषा में शपथ ग्रहण की अनुमति मांग ली थी।  बिश्नोई ने आज विधानसभा-परिसर में प्रवेश से पूर्व तक मुंह पर बांधे रखी और वहां मौजूद लोगों ने मायड़ भाषा के प्रति विधायक बिहारीलाल बिश्नोई के लगाव की द्योतक पट्टी देखकर विरोध के इस अंदाज को सराहा तथा मायड़ भाषा को संवैधानिक-मान्यता दिलवाने के संघर्ष में सहयोग करने का भरोसा भी दिलाया । भाजपा के विधायक बिश्नोई ने अपने इस अंदाजे बयां को जब मीडिया के माध्यम से प्रदेश की जनता तक पहुंचाया तो राजस्थानी भाषा साहित्य कला एवं संस्कृति के साधकों ने भी बिश्नोई की तारीफ की ।लेकिन कुछ जागरूक साहित्य - कला साधकों ने बरसों से चल रहे मायड़ भाषा मान्यता के संघर्ष में भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर क्षोभ प्रकट किया कि वे अपने पांच साल के कार्यकाल में केन्द्र में बहुमत में होते हुए भी मायड़ भाषा की मान्यता के लिए कुछ सार्थक न कर सके। हालांकि विधानसभा व संसद भवन के बाहर लोगों के सामने नेताओं ने इस संबंध में बड़े सब्जबाग दिखाने में कसर न छोड़ी। बावजूद ऐसे दीर्घ कालिक अनुभव के, राजस्थानियों ने अब भी आशा का दामन थाम रखा है। आशा के इस दामन पर मान्यता की मुहर चस्पा करने का काम भाजपा - कांग्रेस में से कौन कर दिखाएगा... यह न जाने कब देखेंगे हम लोग  !
-✍️ मोहन थानवी



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