Type Here to Get Search Results !

चुनावी घोषणा पत्र के साथ गारंटी और वारंटी... ओह... ओह...!

चुनावी घोषणा पत्र के साथ गारंटी और वारंटी... ओह... ओह...!
अचानक सामने जो देखा, यकीन नहीं हुआ। तसव्वुर में जरूर ऐसे नजारे किए लेकिन सामने... यथार्थ में... आश्चर्य ! कैसे तो ख्वाब आया ओर कैसे ख्वाब में ये नजारा आया फिर कैसे सामने हकीकत में देख कर आंखें चुंधिया रही हैं...! स्वप्न...! जरूर स्वप्न ही है ! बांह पर चिकोटी काटी... उई...! जागते का नजारा है ये तो! वाह...! वाह...! सामने सुनहरा महल। महल के इर्द गिर्द खजूर के लंबी परछाइयों वाले पेड़। लंबी परछाइयां... वक्त सुबह का है या संध्या का... जानने का कोई साधन पास में नहीं ! यकबयक मंदिर की घंटियां सुनाई दी... संध्या... नहीं... नहीं... अलसभोर...। नहीं... निश्चित रूप से संध्या का समय है। मन ने कहा, अलसभोर हो तो पेड़ों की परछाइयां नहीं होती... सूर्य चमकने के बाद ही तो परछाइयों को पांव पसारने का मौका मिलता है। जरूर संध्या का समय है। सूर्यास्त के बाद परछाइयां सिमट जाएंगी। अपने आप में। आस पास के लोगों की तरह। ये सुनहरा महल भी दिखाई देना बंद हो जाएगा। आंख से ओझल हो जाएगा सब कुछ। लेकिन ये महल... इसका तो फकत तसव्वुर ही किया था कभी... साक्षात सामने कैसे आ खड़ा हुआ। अभी असमंजस के सागर में गोते लगाता कि बिजली की तेज चमक के साथ ठंडी हवा का झोंका बालों को सहला गया। पल दो पल बीते न बीते... बादलों की गर्जना भी कानों में पड़ी। बरसात... हां बरसात आएगी... लेकिन ये महल... सुनहरा महल... ! ख्वाबों ख्यालों में देखा महल... ! ओह...! सर दर्द से फटा जा रहा है... ! शरीर थकान से अकड़ा हुआ लग रहा है। जरूर ये दो दिन की लंबी रेलयात्रा का परिणाम है। रेलयात्रा... चिहुंक कर गर्दन उठाई... ये क्या...!! अपने ही घर में अपने ही कमरे में हूं...। टीवी चैनल पर कोई सीरियल चल रहा है... उसीमें सुनहरा महल देख हैरान हूं...। नींद में हूं... जागा जागा...हूं ! तभी खिड़की से बिजली की तेज चमक फिर दिखाई दी... बादल भी गरजे। ओह...! मौसम फिर पलट गया है... पश्चिमी विक्षोभ की वजह से बारिश हुई है। तभी टीवी चैनल पर समाचार टेलीकास्ट होने लगे। चुनावी सभा में भगदड़... लोगों ने नेताओं को बोलने नहीं दिया.... चुनावी घोषणा पत्र के साथ गारंटी और वारंटी की मांग पर अड़े रहे लोग। ओह... ओह... ! गजब का समाचार है। लोगों में जागरूकता इस कदर आ गई है कि आईएसआई और ट्रेड मार्क की तरह चुनावी घोषणा पत्र भी मय मार्का और गारंटी के मांगे जाने लगे हैं। सचमुच पश्चिमी विक्षोभ की वजह से ही बारिश की संभावनाएं बढ़ी हैं। सुनहरा महल... जो मेरे मानस पटल पर चमकता रहा है... वो... वो... मतदान केंद्र ही तो है...। ओह...  ओह.... ! तभी बिजली फिर तेजी से चमकी। ठंडी हवा का झांेका फिर बालों को सहला गया। और... सरदर्द भी बढ़ा हुआ महसूस हुआ। रिमोट का रुख टीवी की ओर किया और... टीवी बंद कर दिया। वजह... चुनावी भाषण और चुनावी घोषणाओं के प्रति लोगांे की तरह ही अपुन का भी मोह भंग हो चुका है। खाली-पीली सुनहरे ख्वाब देखने से अच्छा है... जागते हुए, यथार्थ से सामना करना। मरीचिकाओं को केनवास पर ही देखने की आदत डालना। चुनाव होंगे ही, मतदान करना ही है...। फिर भला खुद दलीय घोषणाओं पर क्यों न मंथन कर उचित प्रत्याशी को जिताया जाए...। हां... हां... यही ठीक रहेगा...। इस निर्णय ने मानो सरदर्द हर लिया। बाहर से बादल गरजने की आवाजें आती रही। बिजली भी चमकती रही। मगर अपुन... नींद में खोने लगे... चुनावी गॉसिप.... चर्चा से परे.... सुनहरे महल से दूर... अपने स्वयं के सुखद सपनों में खोने लगे। जय हो।
- मोहन थानवी

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies