दिल की सल्तनत के ये बेताज बादशाह
( प्रमुख अंश ) - प्रदीप भटनागर,
... नगर बीकाणा में भी कई राजा भोज, शहंशाह अकबर और सम्राट कृष्णदेव राय हुए हैं। उनके पास सत्ता और साम्राज्य भी नहीं रहा। इनके रीते हाथों ने सृजन-धर्मियों की पीठ थपथपाकर उनके रचना संसार को पल्लवित और विकसित करने में महती भूमिका निभाई है। हां जी। मेरी मुराद उन रेस्टोरेंट और पान भंडार के मालिकों से है जहां संस्कृतिकर्मियों ने चाय/कॉफी की एक बटा दो प्याली के बाद पान के साथ जुगाली की है। एक-दूसरे से बतियाते हुए  रातें गुजारी है। सृजन किया है। सुना है-सुनाया है। आलोचनाएं-समालोचनाएं व समीक्षाएं की है। कई नाटकों के वाचन और पूर्वाभ्यास भी किए हैं। कोटगेट के भीतर जहां आज हिम्मत मेडिकोज है कभी वहां देर रात तक खुला रहने वाला लालचंद भादाणी का होटल ‘गणेश मिष्ठान्न भंडार’ था; एक ओर जहां होटल के अंदर बुलाकीदास ‘‘बावरा’’, ए वी कमल, वासु आचार्य और नवल बीकानेरी चाय की प्याली में कविताओं के तूफान उठाते थे, तो दूसरी ओर होटल के बाहर लगी बुलाकी दास भादाणी की पान की दुकान पर अभय प्रकाश भटनागर, मनोहर चावला, महबूब अली और मांगीलाल माथुर पान चबाते हुए भिन्न भिन्न विषयों पर बतियाते नजर आते थे। पान का जिक्र आए और गुणप्रकाश सज्जनालय के पास अभी भी आबाद ‘दाऊ पान भंडार’ की याद न आए। भला ऐसे कैसे हो सकता है। आज ही तो भाई बुलाकी शर्मा ने दाऊलाल भादाणी से मिलवाया था। उन्होंने क्या जायकेदार पान खिलाया था। दाऊ पान भंडार और दाऊजी के बारे में बहुत कुछ सुना था। थोड़ा बहुत देखा भी था। लगे हाथों पूछ ही लिया: ‘‘ कौन-कौन आता था आपकी दुकान पर ? ’’ हाथोंहाथ जवाब मिला - ‘ ये पूछिए कौन नहीं आता था। नंद किशोर आचार्य, हरीश भादाणी, भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’, मोहम्मद सदीक, भीम पांडिया, कांति कोचर, अजीज आजाद, मालचंद तिवाड़ी, दीपचंद सांखला। सभी तो आते थे; वो लोग-वो समय याद आता है सब। पर वो बात कहां है अब।’’ कहते कहते दाऊजी भावनाओं में बह गए। भावुकता से बचने के लिए मैं भी केईएम रोड की तरफ निकल आया।... (दैनिक युगपक्ष में प्रकाशित रंगचर्चा से साभार)