स्वागत !!!

( Old Poem )
नववर्ष का स्वागत करने को अब दिल नहीं करता
क्योंकि
कुछ लोग ऊपर से नजर आते हैं गांधी, कुछ नेहरू
मगर कोई बोस नहीं दिखता
इन सभी का जो सच्चा अवतार आ जाता
पता नहीं क्या से क्या हो जाता
कुछ लोग रावण हैं हर बार एक और चेहरा लगा लेते हैं
परन्तु रावण का चेहरा  नया हो या पुराना
देखकर रावण ही याद आता है
क्योंकि बदल लेने पर भी चेहरा
राम वो बन नहीं पाता इसलिए
स्वागत करने को अब दिल नहीं करता
क्योंकि
वर्ष नया हो या पुराना दिल के घाव नहीं भरता
पूरब को पश्चिम से नहीं जोड़ता
एषिया को यूरोप से नहीं मोड़ता
हिंसा, जो थी महाभारत काल में
या थी जो प्रभु यीशु के समक्ष
या उस समय जब गिराए गए परमाणु बम
वहीं हिंसा कारगिल की ऊंची पहाड़ी में छिपी
अपहृत हुए कंधार पहुंचे विमान में दिखी
इस हिंसा को कोई वर्श अहिंसा में नहीं बदलता
नववर्ष का स्वागत करने को अब दिल नहीं करता