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पिता ऐसा ही कहते हैं

पिता ऐसा ही कहते हैं
बढ़ता अनाचार रिश्तों को डुबो रहा
आंख का पानी सूखा इशारे बेमानी हुए
जमाना पैसे की गुड़िया का दास बना
कलपुर्जों की भीड़ में इनसान कहां होंगे
आदमी को ढूंढ़ता रोबोट पृथ्वी पर आएगा
युग बीते कितने इतिहास में नहीं दर्ज हुए
पुराण कथाओं के किस्से पिता कहते हैं
बीत रहा युग नया जमाना आएगा
खेलने की उम्र में अपने ही बच्चों को खेलाएंगे
पिता ऐसा ही कहते हैं हर बार लगता रहा
हैरानगी बढ़ी जानकर समाज सोता रहा
पता चला मानव अपना ही गुर्दा बेच रहा
रिश्ते रिसते रहे जीवन एकाकी बनता रहा
शाख से शाख न निकली पेड़ ठूंठ बन गया
फूलों का मकरंद कहां भंवरा ढूंढ़ता रहा

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1 Comments

  1. sindhi paheli = कारे बन में कारो जीवु
    खून पीअण वारो आ हीउ = जूं सिर के काले बालों में जूं

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