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‘रंगकर्म’ में भगवान भी माहिर

नाटक के माध्यम से समाज को शिक्षा और संदेश देने का कार्य सदियों से होता आया है। हमारी संस्कृति में रचीबसी पुराणों की कथाओं में भी भगवान विष्णु द्वारा अनेक रूप धरकर भक्तों की रक्षा करने के उदाहरण हैं। दूसरे देवी-देवताओं और अन्य पात्रों को लेकर भी अनेकानेक नाटक मंचित हुए हैं। भले ही पुराणों में वे कथाआंे के रूप में हैंे। वह नाटक नहीं है लेकिन रूप बदलना, नाटकीय अंदाज में वर्णन करना आदि से उन कथाओं में संकेत मिलते हैं कि नाट्य विधा को समाज ने बहुत पहले से अपनाया हुआ है।’
यहां तक कि 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस भी मनाया जाता है।
रंगमंच न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि इससे समाज को जागरूक करने का कार्य भी सदियों से किया जाता रहा है। इसके माध्यम से लोक कलाओं की विविध विधाओं को भी संरक्षण मिलता है। नाटक में लोक संगीत, लोक कथाएं और लोक व्यवहार समाहित रहता है इसलिए ऐसे ऐतिहासिक तथ्य सुरक्षित रहते हैं जो इतिहास के पन्न्नोें मंे दर्ज होने से रह जाते हैं। ऐसे महान कलाकार भी हुए हैं  जिन्होंने रंगकर्म के द्वारा न केवल समाज को शिक्षित किया बल्कि संकट के समय राष्ट्रभक्ति की भावना भी लोगांे में पैदा की जिससे देश को आजादी मिलने में भरपूर सहयोग मिला। ऐसे रंगमंच के महान कलाकारेां को नमन। बहुत पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के नाटक अंधेर नगरी (1881) से बिहार का एक राजा सुधर गया था। बाद में अंधेर नगरी नाटक को बच्चोें ने अपनी सुविधा के अनुसार मंचित करना शुरू किया तो जनमानस में वह नाटक लोककथा की तरह पैैठ बना गया जो आज भी उस नाटक से उपजी कहावत अंधेर नगरी चौपट राजा के रूप में जनमन में समाहित है। इतना ही नहीं प्रसिद्ध नाट्यकार लक्ष्मण सिंह के बालक भरत (1862) नाटक से तो बच्चों को बहुत कुछ सीखने कोे मिलता है। करीब करीब सौ वर्ड्ढ पूर्व भी जब स्कूलों में बड़े अधिकारी आते या वार्ड्ढिकोत्सव अथवा खास त्योहारों पर फंक्शन होते तो बच्चेेेेेेेे नाटक से मनोेेरंजन के साथ सीखी हुई बातों को दर्शातेे थे। यह शिक्षा देने के उद्देश्य सेे किया जाता साथ ही अपनी संस्कृति से भी परिचय होता था। आजकल तकनीकी दृष्टि से भी इस क्षेत्र में काफी विकास हुआ है औेर प्रतीकात्मक रूप से कठिन दृश्यों को मंचित करने का तरीका काफी सराहा जाने लगा है।

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