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बीकानेर के साहित्यकारों ने किया श्रीधर पराड़कर की गीता सदृश्य 18 अध्यायों वाली पुस्तक 'साहित्य का धर्म ' का विमोचन साहित्य का धर्म लोक से जुड़ा हो और मानवीय हो - मधुरिमा सिंह Bikaner litterateurs released 18-chapter book 'Sahitya ka Dharma', similar to Gita by Sridhar Paradkar Religion of literature should be connected with the people and should be human - Madhurima Singh

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 📝   ✍️ बीकानेर के साहित्यकारों ने किया श्रीधर  पराड़कर की गीता सदृश्य 18 अध्यायों वाली पुस्तक 'साहित्य का धर्म ' का विमोचन

साहित्य का धर्म  लोक से जुड़ा हो और मानवीय हो - मधुरिमा सिंह

( विशेष  : वरिष्ठ साहित्यकार श्रीधर पराड़कर राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मंचों को सुशोभित कर विश्व-साहित्य को मानवीयता और भारतीयता की सौरभ  प्रदान करने वाले व्यक्तित्व एवं कृतत्व की स्वामी शख्सियत का नाम है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री के रूप में पराड़कर जी के कार्य युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने वाले। उन्होंने अपनी इस सद्य प्रकाशित पुस्तक साहित्य का धर्म में कुल 18 अध्यायों के माध्यम से साहित्य-सृजनधर्मिता के मर्म को साहित्य सृजकों तक बहुत ही खूबसूरती के साथ संप्रेषित करने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। साधुवाद। - मोहन थानवी ) 

 बीकानेर -  अखिल भारतीय साहित्य परिषद बीकानेर इकाई की ओर से अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर जी पराड़कर द्वारा सद्य: प्रकाशित
'साहित्य का धर्म ' का विमोचन समारोह सुदर्शना कला दीर्घा में संपन्न हुआ सर्वप्रथम मां सरस्वती का माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित किया गया । बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश जी शर्मा, मधुरिमा सिंह ,डॉ मूल चंद बोहरा, डॉ भंवर लाल पारीक, डॉक्टर अखिलानंद पाठक,मोनिका शर्मा,सुधा आचार्य, डॉ देवेंद्र भारद्वाज द्वारा साहित्य का धर्म पुस्तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर पुस्तक की सांगोपांग समीक्षा की गई ।सर्वप्रथम अपने समीक्षा वक्तव्य में डॉ मूल चंद बोहरा ने कहा कि साहित्य का धर्म होना चाहिए कि वह सबका हित करें , चरित्र निर्माण का कार्य करें तथा धर्म को व्यापक अर्थ में लिया जाना चाहिए । इस अवसर पर कार्यक्रम की संचालिका और वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार मोनिका गौड़ ने कहां कि साहित्य वह है जो राष्ट्र प्रेम जगाए और नई पीढ़ी में नई चेतना जागृत करें उन्होंने आजकल के बाजारों साहित्य पर कटाक्ष किया उन्होंने कहा कि साहित्य बाल साहित्य की रचना कम हो गई है जिससे नई पीढ़ी में साहित्य का मर्म समझने में समस्या उत्पन्न हो रही है उन्होंने रामायण और गीता जैसे साहित्य रचना पर बल दिया । इसी क्रम में वरिष्ठ साहित्यकार मधुरिमा सिंह ने कहा कि साहित्य का धर्म होना चाहिए कि वह लोक से जुड़ा हो और मानवीय हो तथा भारतीय परंपरा संस्कृति से जुड़ा हुआ हो साथ ही आनंद देने वाला हो । उन्होंने श्रीधर जी पराड़कर द्वारा रचित पुस्तक के निबंधों को राष्ट्र को दिशा देने वाला बताया । उन्होंने कहा कि आज पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित होकर हम साहित्य लिख रहे हैं । इस अवसर पर डॉ देवेंद्र भारद्वाज ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज राष्ट्र के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं जिसमें साहित्य और साहित्यकार के समक्ष भी एक चुनौती है चरित्र निर्माण करने वाले साहित्य की रचना की जाए जो हमें जगाने का कार्य करें हमें नकारात्मक साहित्य से बचना होगा । इस अवसर पर साहित्य परिषद के साहित्य मंत्री डॉक्टर अखिलानंद पाठक ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज का साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं लोगों की चेतना जगाने वाला होना चाहिए भारत की ज्ञान परंपरा वेद पुराण से चला आ रहा साहित्य अपने आप में पूर्ण समर्थ है जो समग्र समाज को एक आत्मकथा के सूत्र में बांधने में सक्षम रहा है आज विमर्श के नाम पर दलित विमर्श स्त्री विमर्श द्वारा समाज को बांटने का कार्य हो रहा है आज प्रगतिवाद के नाम पर यथार्थ लग्न का चित्रण करके साहित्य और कला को अश्लीलता की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया है हमारा साहित्य हमारी संस्कृति हमारी परंपरा और लोक साहित्य से प्रेरित होना चाहिए पराडकर जी ने इस दिशा में इस पुस्तक के माध्यम से साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है । इस अवसर वरिष्ठ साहित्यकार सुधा आचार्य ने लोक साहित्य लोकगीत और परंपरा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें लोक साहित्य पर ध्यान देना चाहिए और भारत की गांव में बसी हुई आत्मा लोक साहित्य को महत्व दिया जाना चाहिए राजस्थानी भाषा और साहित्य में भारतीय साहित्य के प्राण तत्व छुपे हुए हैं उन्हें निखारने की आवश्यकता है परंतु आज तक उस पर उतना कार्य नहीं हुआ जितना होना चाहिए लोक साहित्य का अपना महत्व है और लेखकों को उसको प्राथमिकता से लेना ही होगा । अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रमेश चंद्र शर्मा ने कहा कि पराड़कर जी द्वारा लिखित निबंध संग्रह साहित्य का धर्म एक श्रेष्ठ निबंध संग्रह है जिसमें 18 अध्याय के माध्यम से साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है साहित्य की सामग्री साहित्य की दिशा आज के साहित्य के लिए क्या अनुदेश होने चाहिए इस पर भी विचार किया गया है उन्होंने कहा कि हमें भारत के लोगों को जाने बिना यहां की संस्कृति को जाने बिना यहां के लिए अच्छा साहित्य नहीं लिखा जा सकता उन्होंने यह भी कहा कि निबंध में और भी कुछ लिखा जा सकता था और विषय को परिमार्जित भी किया जा सकता था फिर भी यह संग्रह नए लेखों के लिए प्रेरणा का काम करेगा । कार्यक्रम में साहित्य परिषद के प्रांत महामंत्री कर्ण सिंह बेनीवाल ने भी साहित्य का धर्म पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमारा साहित्य कहीं न कहीं दिशा भटकता जा रहा है जिसे दिशा देने का कार्य पुस्तक करेगी । इस अवसर पर डॉ सुरेश कुमार सोनी,विनोद कुमार ओझा,विनोद जी शर्मा ,रमेश महर्षि,ब्रजमोहन जी,आशीष सोनी,बीकानेर विभाग संयोजक डॉ भंवर लाल जी पारीक ,सत्य प्रकाश जी शर्मा अनुराग पारीक ,डॉक्टर उज्जवल गोस्वामी ,सुधा आचार्य ,गंगा प्रशाद जी,भी उपस्थित रहे कार्यक्रम का संचालन मोनिका गौड़ ने किया । अंत में सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन साहित्य परिषद के जिला अध्यक्ष श्री विनोद ओझा ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।पुस्तक को दिशा देने वाली बताया । ✍🏻




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