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गणगौर के ज़्वारा अमृत है

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गणगौर के ज़्वारा अमृत है




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होलिका से गणगौर ,गणगौर के ज़्वारा अमृत है

ज्वारा को पानी में विसर्जन करना चाहिये ताकि पानी की पौष्टिकता बढ़े या फिर ज्वारा को पीस कर रस निकाल कर पी लेना चाहिये।

होलिका - शक्ति सम्पन्न सती
हमारे महामानवों ने सभी तीज-त्यौहारों को पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए शुरू किए हैं। होलिका दहन में पर्यावरण, आध्यात्मिक का गूढ़ रहस्य छिपा हुवा है। होलिका दहन से पर्यावरण सुधार व शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ होता है। होलिका दहन से शक्ति सम्पन्न की नीति अनिति अपनाने से भस्म हो जाने की शिक्षा मिलती है। 
वर्तमान में कुड़ा-करकट इकट्ठा करके होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है। होलिका दहन के समय दुषविचारों, दुष्कर्मों को जलाने व सत्कर्मों को अपनाने की भावना रखनी चाहिये। होलिका दहन से विशेष तौर से महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिये कि शक्ति सम्पन्न सत्ती होलिका भी असत्य का साथ देने से जल जाती है। सत्य फिर भी जीवित रहता है। 



हम वर्षों से पर्यावरण सन्तुलन व सुरक्षा का कार्य कर रहे हैं। जिसका गूढ रहस्य है प्राणियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना। स्वस्थ प्राणियों से असीम शान्ति कायम हो सकेगी- प्रजापति
होली का दहन का प्रचलन कब से शुरू हुआ क्यों शुरू हुआ? इस बारे में अनेक तरह के विचार प्रकाशित हो रहे हैं कई किवदन्तियां प्रकाशित होती है कई ग्रन्थों में होलिका दहन के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है साथ ही देश-काल के अनुसार भी होलिका दहन के तौर-तरीके अलग-अलग हैं। हम इन सब बातों की ओर न जाकर सीधे हमारे महामानवों द्वारा शुरू किये गये तीज-त्यौहारों का प्रचलन पर्यावरण व स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ के लिए शुरू किया है उसी ओर विशेष ध्यान दिलाना चाहेगें साथ ही आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य के बारे में भी जानकारी देना चाहेगें। होलिका दहन-सर्दऋतु में कई कीटाणु पैदा हो जाते है जो पर्यावरण व स्वास्थ्य को भारी क्षति पहुंचातें है ऐसे में इन कीटाणुओं को नष्ट करने में ग्राम-नगर की सफाई को मध्यनजर रखते हुवे होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है। होलिका दहन में जो भी कूड़ा-करकट पड़ा होता है उसे जलाना चाहिये। 
इस प्रकार शीत काल में जो कीटाणु पैदा होकर वनस्पति व प्राणियों को नुकसान पहुंचाते है वे अनावश्यक कीटाणु जल जाते है और वह ग्राम, नगर की एक तरह से सफाई पूर्णतः हो जाती है। लेकिन वर्तमान में इस प्रकार की कार्यशैली अपनायी नहीं जा रही है प्रशासन भी किसी भी तरह की सफाई की ओर विशेष ध्यान नहीं देता जबकि सरकार व प्रशासन को चाहिये कि प्रत्येक तीज-त्यौहार पर ग्राम-कस्बा-नगर आदि को एक बार तो पूर्णतः स्वस्छ करें। लोग घर की सफाई करके जो कुड़ा-करकट बाहर फैंकते है वह भी यूं ही बिखरा पड़ा रहता है। इस प्रकार वर्तमान में जो होलिका दहन हो रहे हैं वह आडम्बर के रूपक बन गये है।
होलिका दहन का आध्यामिक रहस्य
होलिका एक शक्तिसम्पन्न नारी थी जिसे वरदान प्राप्त था कि सत्य का साथ देते रहने से तुम आग में भी नहीं जलोगी। लेकिन होलिका मूल बात भूल गई और भूल गई यह भी कि भतीजा भी पुरूष की श्रेणी में ही आता है और इस प्रकार असत्य का साथ देकर जल गई और सत्य जीवित रह गया। 
होलिका दहन से महिलाओं को शिक्षा
आज दहेज लोभी भेड़िये अबोध कमजोर महिलाओं को निर्ममता से जला रहे हैं ऐसी परिस्थितियों में आज की महिलांए होलिका की तरह दृढ़ निष्ठावान चरित्र वाली होकर शक्ति सम्पन्न बनकर सत्य का साथ देती रहे तो उसे प्रताड़ित करने व जलाने का दुःसाहस करने वाले खुद जलकर भस्म हो सकते हैं। 
होलिका की भस्मी से पिडोलिया पूजन
होलिका दहन की भस्म से दूसरे दिन बालिकांए पिण्डोलिया बनाकर सोलह दिन तक पूजती है इसका महज यही कारण है कि होलिका एक महान शक्तिसम्पन्न सत्ती थी और सत्ती की भस्मी का पूजन करते हुवे यह विचार करते रहना चाहिये कि होलिका की तरह हम भी महान शक्ति सम्पन्न बने और जो गलती सत्ती होलिका ने की थी वह गलती हम नही करें।



इस प्रकार के विचार होलिका दहन के समय भी अपनाने चाहिये। 
ज्वारा बोने व पूजन करने के गूढ़ रहस्य
होलिका दहन से स्वाभाविक तौर से धुआं उठता है और अग्नि से कई कीटाणु-जीवाणु मरते है इस प्रकार वातावरण शुद्ध तो होता है परन्तु फिर भी दुषित धुएं का भी कुप्रभाव रहता है ऐसे समय में घर पर ज्वारा बोने से दुषित वायु का प्रभाव कम हो जाता है। 
ज्वारा का विसर्जन
ज्वारा को पानी में विसर्जन करना चाहिये ताकि पानी की पौष्टिकता बढ़े या फिर ज्वारा को पीस कर रस निकाल कर पी लेना चाहिये। 
प्राचीन काल में तो पानी में डालने की प्रथा थी परन्तु वर्तमान में ज्वारा को कुड़े करकट में फैंक दिया जाता है इस प्रकार बेशकीमती चीज को फैंककर पर्यावरण को नुकसार पहुंचाया जा रहा है। अतः इस प्राचीन परम्परा का महत्व समझते हुवे पर्यावरण पे्रमी वर्ग की महिलाओं पुरूषों को पहल करनी चाहिये। 
अब जरा सोचिये कि जो महामानवों ने हमारे तीज-त्यौहारों में जो प्रथा शुरू की थी उनमें आज बढ़ते प्रदूषण में दोष आ जाने पर और अधिक प्रदूषण को बढावा मिल रहा है। अतः हमें अभी से पर्यावरण व स्वास्थ्य को लाभ में रखते हुवे तीज-त्यौहारों में जो खान-पान बनाने का महामानवों ने रिवाज शुरू किया था उन्ही पकवानों को मध्यनजर रखकर पकवान बनाने चाहिये। इस प्रकार कम खर्च में हम बढ़ते प्रदूषण को रोकने में पूर्णतः सक्षम होगें। अब हम चेतावनी भी देना चाहेगें कि आज प्रदूषण का साम्राज्य हर क्षेत्र में विकराल रूप धारण कर चुका है और जिसमें मानसिक प्रदूषकों की संख्या बढ़ती जा रही है जिस कारण आज चारों ओर अशान्ति ही अशान्ति व अन्धकार का भविष्य बन गया है इसे समाप्त करना है तो एक मात्र इसका उपाय है पाक्षिक खेजड़ा एक्सपे्रस, प्रकृति शक्ति पीठ द्वारा चलाये गये घर-घर तुलसी पौघ लगाओ अभियान को सफल बनाना। 
अतः घर-घर तुलसी पौध लगाओ अभियान को सफल बनाईये और असीम, सुख- शान्ति वैभवशाली बनिये। तथा तुलसी पौध का दान करे तुलसी पौध दान से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है यह दान श्रेष्ठतम पवित्र दान है।

-✍️ भगवान ,अधिष्ठाता ,प्रकृति शक्ति पीठ ,बीकानेर ,9177957772   



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