आप से गया तो जहान से गया
आज की बात नहीं बल्कि प्राचीन काल से हमारी संस्कष्ति, हमारे संस्कार और परंपराएं हमें सामाजिक जीवन में आगे बढ़ने में सहयोगी रहे हैं। हम किसी भी धर्म में आस्था रखते हों, किसी भी समुदाय से जुड़े हों हमंे अपने जमीर, अपनी अंतरआत्मा की आवाज को वरीयता देने की सीख मिली है। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने भी अंतरआत्मा की बात कही थी। दरअसल अध्यात्म में अपने विवेक को जगाने की शक्ति है और जो खुद उच्च विचारों वाला और मानसिक - बौद्धिक रूप से शक्तिशाली होता है उसे खुदा किसी भी क्षेत्र में कभी भी कमजोर नहीं होने देता। सूफी संतों ने भी कुछ ऐसा ही संदेश दिया है। मन की शक्ति बढ़ाने की बात कही है। यही कारण है कि हमारे बुजुर्ग कहते रहे हैं, आपसे गया तो जहान से गया। सच भी तो है, जो अपने काम से खुद संतुष्ट नहीं, वह आसानी से समझ जाता है, दूसरे लोग भी उसके काम से संतुष्ट नहीं हैं। जो जाने अनजाने खुद से हुए कुकष्त्यों को जान समझ कर भी पश्चाताप नहीं करता, उसे अंततः ग्लानि तो होती ही है और ऐसा व्यक्ति अपनी ही नजरों में गिर जाता है। यह तो जाहिर बात है कि जो खुद अपनी नजर में गिरा, वह दुनिया की नजरों में भी गिरा।
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