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पनघट पर परंपरा मुंह छुपाए खड़ी

घास
खाने को
नहीं मिलती
बरसात के बाद जल गई
तेज धूप से
मैं
पषुओं को ले
दर-दर भटकता रहा
षहर और गांवों में
टीवी, रेल, हवाई जहाज, आलीषान मकान
व्ैाज्ञानिकों का सम्मान
सबकुछ देखा
न देखा तो केवल कहीं बच्चों का स्वछन्द खेलना
कहीं हराभरा खेत और पषु धन के लिए
घास
संस्कृति एक कोने में दुबकी
गांव के पनघट पर
परंपरा मुंह छुपाए खड़ी
मेरे बेजुबान पषुओं के पास
जो निरीह आंखों से ढूंढ़ रहे
घास
( मोहन थानवी के हिंदी उपन्यास काला सूरज से ...)

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