मित्र सुरेश की काव्य पंक्तियां...

मित्र  सुरेश हिंदुस्तानी की काव्य पंक्तियां...
विस्मृत प्यार...
तुम्हारे प्यार में
विस्मृत है
प्यार के अर्थ
शब्द, ताल, लय
किसी बंद गली से।
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शर्मसार....
अब
कितना तरल हूं
हर सांचे में, ढला जाता हूं
कहीं भी तो नहीं
मुझमें कुछ ऐसा
जो चट्टान - सा दिखे
कहे गर्व है तुम पर
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इमारत...
ऊंची इमारतों के भीतर
घुसने के लिये
जरूरी है
घटा लें कद को
झुका लें चेहरे को।
दरवाजों से इंसाफ की उम्मीद
बेकार है दोस्त
वे अपने कद से
कभी नहीं बढ़ते
हटा जरूर लिये जाते हैं
कभी - कभी अपनी जगह से
पर तब भी इमारत
भीतर से नहीं बदलती
जन्म देती है, सैकड़ों दरवाजों को
अपने भीतर,
गहरे तक
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मौसम...
मौसम
तुम भी हो गये
मेरे इर्द - गिर्द
बिखरे चेहरों से
ओढ़ लिये
बिछा लिये
कृतिम मुस्ककुराहटों के वसन
काश बन पाता मैं भी
तुम्हारी तरह
तब तुम आते
समय - समय पर
कई बसंत
मेरे भीतर

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