एक संपादक का सच... मुझे नहीं लगता था कि मेरे प्रकाशक महोदय को कुछ कहानियों में से एक का यह शीर्षक संग्रह के लिए आकर्षक लगेगा... अब बारी प्रकाशन की है। देखते हैं कब नंबर लगता है। कहानी उस खबर पर केंद्रित है जो संपादक महोदय ने अपने पाक्षिक में छापी लेकिन फिर उस खबर को देने वाले संपादक के सूत्रों सहित हर पक्ष उसे झुठलाने में जुट गया... फिर ऐसा कुछ हुआ कि... संपादक का सच सभी को मानना ही पड़ा...।
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