में और मेरा सर्जन
----- जिस दर पे कभी ताला न लगा
ऐ खुदा वो ही अपना घर देना
ओरो की क्या बात करू में नादान
सुबह ही अखबार में पढ़ा .... मंदिर में चोरी हो गई.....
विचारों और भावनाओं को शब्द देने का प्रयास करता हूं
हिंदी, सिंधी और राजस्थानी भाषा में उपन्यास, नाटक, कहानियां, कविताएं लिखी हैं।
पत्रकारिता से जीवनयापन, ब्लॉगर हूं, अखबारों के लिए लिखता हूं।
जीवन का श्रम ताप हरो हे!
ReplyDeleteसुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!
सूने जग गृह द्वार भरो हे!
लौटे गृह सब श्रान्त चराचर
नीरव, तरु अधरों पर मर्मर,
करुणानत निज कर पल्लव से
विश्व नीड प्रच्छाय करो हे!
उदित शुक्र अब, अस्त भनु बल,
स्तब्ध पवन, नत नयन पद्म दल
तन्द्रिल पलकों में, निशि के शशि!
सुखद स्वप्न वन कर विचरो हे!
(सुमित्रानंदन पंत )
sundar hai... जिस दर पे कभी ताला न लगा
ReplyDeleteऐ खुदा वो ही अपना घर देना... badhiya.
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