Ticker

6/recent/ticker-posts

Ad Code

Responsive Advertisement

डाॅ. केवलिया को ‘कला डूंगर कल्याणी‘ राजस्थानी शिखर पुरस्कार रोटरी राज्य स्तरीय राजस्थानी भाषा समारोह आयोजित






-डाॅ. केवलिया को ‘कला डूंगर कल्याणी‘ राजस्थानी शिखर पुरस्कार

रोटरी राज्य स्तरीय राजस्थानी भाषा समारोह आयोजित


*खबरों में बीकानेर*




-


👇 नीचे लिंक पर क्लिक करें और पढ़ें - मिसाल :-: बीकानेर में दीपावली पर अनोखा रक्तदान   https://bahubhashi.blogspot.com/

इस स्कूल के पूर्व विद्यार्थियों ने दिवंगत गुरुजनों और साथियों की स्मृति में किया रक्तदान 👇





-

डाॅ. केवलिया को ‘कला डूंगर कल्याणी‘ राजस्थानी शिखर पुरस्कार

रोटरी राज्य स्तरीय राजस्थानी भाषा समारोह आयोजित 

राजस्थानी अत्यंत समृ़द्ध भाषा- लखावत


बीकानेर, 27 अक्टूबर। राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष  ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि राजस्थानी अत्यंत समृ़द्ध भाषा है। राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति पर हम सभी को गर्व होना चाहिए। 

     लखावत रविवार को रोटरी क्लब बीकानेर की ओर से रोटरी भवन, सादुलगंज में आयोजित राज्य स्तरीय राजस्थानी भाषा समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। समारोह में प्रदेश के राजस्थानी साहित्यकारों को विभिन्न पुरस्कार प्रदान किये गये।

इन्हें किया गया पुरस्कृत 

समारोह के दौरान वर्ष 2024 का ‘कला डूंगर कल्याणी‘ राजस्थानी शिखर पुरस्कार (इक्यावन हजार रुपए) बीकानेर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन केवलिया को, ‘खींवराज मुन्नीलाल सोनी‘ राजस्थानी गद्य पुरस्कार (इक्कीस हजार रुपए) रामगढ़, नोहर के साहित्यकार पूर्ण शर्मा ‘पूरण‘ को, ‘बृज उर्मी अग्रवाल‘ राजस्थानी पद्य पुरस्कार (ग्यारह हजार रुपए) भीलवाड़ा के साहित्यकार कैलाश मण्डेला को तथा ‘राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार’ (पाँच हजार रुपए) लक्ष्मणगढ़, सीकर की साहित्यकार विमला महरिया ‘मौज’ को प्रदान किया गया। पुरस्कृत साहित्यकारों को चेक, स्मृति चिन्ह, शाॅल, श्रीफल आदि भेंट कर सम्मानित किया गया। 
   
लखावत ने बताया कि प्रदेश के महापुरुषों की पावन स्मृति में उनके स्मारक बनवाए जा रहे हैं। बीकानेर में राव बीकाजी के भव्य स्मारक का शीघ्र ही निर्माण होगा। राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिये किये गये प्रयासों की जानकारी देते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि राजस्थानी को मान्यता अवश्य मिलेगी। श्री लखावत ने कहा कि हम युवा पीढ़़ी को राजस्थानी बोलने, लिखने व पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करेें तथा उन्हें राजस्थान के गौरवशाली इतिहास की जानकारी दें।

  वरिष्ठ साहित्यकार व शिक्षाविद् डाॅ. मदन केवलिया ने कहा कि मायड़ भाषा हमारा गौरव है। राजस्थानी साहित्य में वीरता, उत्साह, भक्ति, श्रंगार, हास्य आदि सभी रसों के जीवंत उदाहरण देखने को मिलते हैं। संयोजक अरुण प्रकाश गुप्ता ने रोटरी क्लब की गतिविधियों का परिचय देते हुए राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने संबंधी आगामी योजनाओं पर प्रकाश डाला।

 मनमोहन कल्याणी ने स्वागत भाषण दिया। राजेश चूरा ने बताया कि पुरस्कारों के तहत राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार भी प्रतिवर्ष प्रदान किया जाएगा।

 रोटरी क्लब अध्यक्ष सुनील सारड़ा ने आभार व्यक्त किया। वरिष्ठ उद्घोषक किशोरसिंह राजपुरोहित ने समारोह का संचालन किया।

 इस अवसर पर कवि कैलाश मंडेला ने काव्य पाठ किया। डी. डी. व्यास, राजेन्द्र बोथरा ने भी विचार व्यक्त किये। 

पृथ्वीराज रतनू, मनीष तापड़िया, सुनील गुप्ता, दिनेश आचार्य ने पुरस्कृत साहित्यकारों का परिचय दिया। कलासन प्रकाशन की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गयी।


          इस अवसर पर प्रो. भंवर भादाणी, डाॅ. सत्यप्रकाश आचार्य, बुलाकी शर्मा, शरद केवलिया, रवि पुरोहित, डी. पी. पच्चीसिया, सुधा आचार्य, प्रमोद शर्मा, हेम शर्मा, प्रो. सवाई सिंह, डॉ. नंदलाल वर्मा, भंवर सिंह, डॉ. के. एल. बिश्नोई, पवन दान, ओम मोदी, मुकेश कुलरिया, अनिल माहेश्वरी, रीटा आहूजा, अरविंद केवलिया, एम. एल. जांगिड़, गौतम केवलिया, पूर्णिमा मित्रा सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद थे। 


राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद- 

राजस्थानी लोक रौ ग्यांन शास्त्र सूं बड़ौ है : प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण 

सिमरथ रैयी मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा : लक्ष्मीकांत व्यास  

बीकानेर । कालबोध की दृष्टि से राजस्थानी साहित्य को मौखिक एवं लिखित दो अलग अलग रूपों में परिभाषित किया जाता है। इस दृष्टि से राजस्थानी मध्यकालीन गद्य विधाएं मौखिक साहित्य से जुड़ी हुई है क्योकि मध्यकालीन गद्य कहने की एक अनूठी कलां है। राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान शास्त्रीय ज्ञान से ज्यादा श्रेष्ठ एवं विशाल है। यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं श्री नेहरू शारदा पीठ पीजी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ' मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा ' विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में बतौर अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि लोक साहित्य का निर्माण सप्तऋषियों ने किया था जिसे लोक ने सहज रूप से स्वीकार किया जो अपने आप में अद्भुत है। 

राष्ट्रीय परिसंवाद संयोजक डाॅ. प्रशांत बिस्सा ने बताया कि उदघाटन समारोह में मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास ने कहा कि मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा एक समृद्ध एवं अनूठी परम्परा है जिसे आधुनिक गद्य का आधार स्तंभ कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इस अवसर पर उन्होंने मध्यकालीन जैन संतो के गद्य रचनाओं की विवेचना करते हुए बालावबोध का महत्व उजागर किया। उदघाटन समारोह के अंतर्गत ख्यातनाम कवि-आलोचक डाॅ.अर्जुनदेव चारण एवं प्रतिष्ठित रचनाकार मधु आचार्य आशावादी का नेहरू-शारदापीठ संस्थान द्वारा भव्य अभिनंदन किया गया। प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। संगोष्ठी संयोजक प्रशांत बिस्सा ने स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया। उदघाटन सत्र का संचालन डाॅ. गौरीशंकर प्रजापत ने किया।  


प्रथम तकनीकी सत्र : प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ. गीता सामौर की अध्यक्षता में आयोजित प्रथम तकनीकी सत्र में श्रीमती संतोष चौधरी ने मध्यकालीन राजस्थानी बात साहित्य एवं डाॅ.गौरीशंकर प्रजापत ने मध्यकालीन राजस्थानी विगत साहित्य विषयक आलोचनात्मक पत्र प्रस्तुत किये। 

द्वितीय तकनीकी सत्र : प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित की अध्यक्षता में द्वितीय तकनीकी सत्र सम्पन्न हुआ। इस सत्र में डाॅ.सत्यनारायण सोनी ने मध्यकालीन राजस्थानी ख्यात साहित्य एवं डाॅ. नमामी शंकर आचार्य ने मध्यकालीन राजस्थानी वारता साहित्य विषयक आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये।  


समापन समारोह : एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का समापन समारोह प्रतिष्ठित विद्वान डाॅ.मदन सैनी ने मुख्य आतिथ्य उदबोधन में कहा की मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा हमारी अनमोल धरोहर है। जालौर महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.अर्जुनसिंह उज्जवल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि राजस्थानी में युवाओं का भविष्य सुरक्षित है इसलिए ही आज का युवा राजस्थानी भाषा साहित्य के प्रति सच्चे मन से समर्पित होकर सृजन कर रहा है । अंत में डाॅ. प्रशांत बिस्सा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।  

इस अवसर पर ब्रज रतन जोशी, राजेन्द्र जोशी, कमल रंगा, धीरेन्द्र आचार्य, नरेन्द्र किराड़ू शंकरसिंह राजपुरोहित, हरीश शर्मा, डाॅ.रामरतन लटियाल, डाॅ. हरिराम बिश्नोई, राजेन्द्र स्वर्णकार, रेणूका व्यास, प्रशांत जैन, नीतू बिस्सा, समीक्षा व्यास, मनीषा गांधी, राजकुमार पुरोहित, अमित पारीक, मुकेश पुरोहित सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार एवं राजस्थानी भाषा-साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

Post a Comment

0 Comments