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लगातार हो रही ठक-ठक..., राज्य वृक्ष खेजड़ी कटाई के खिलाफ महाअभियान की तैयारी ! सत्ता तक नहीं पहुंच रही ठक-ठक !!


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*खबरों में बीकानेर*

लगातार हो रही ठक-ठक..., राज्य वृक्ष खेजड़ी कटाई के खिलाफ  महाअभियान की तैयारी ! 

सत्ता तक नहीं पहुंच रही ठक-ठक !! 

राज्य वृक्ष खेजड़ी कटने की आवाज सुनो सरकार, सुनो
- हेम शर्मा


पूरा पश्चिमी राजस्थान सोलर हब बन रहा है। बीकानेर भी सोलर हब है। बीकानेर जिले में तेजी से सोलर कंपनियां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए नए नए प्रोजेक्ट ला रही है। जहां सोलर प्लांट लग रहे हैं ऐसी लाखों बीघा भूमि पर पेड़ कटे हैं। खासतौर पर खेजड़ी की कटाई का विरोध हो रहा है। सोलर कंपनियों की ओर से सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के दौरान खेजड़ी कटाई के खिलाफ 16 अगस्त को छत्तरगढ में महाअभियान की तैयारी चल रही है। आयोजकों का नारा है कि राज्य सरकार होश में आओ, खेजड़ी बचाकर सोलर लगाओ। खेजड़ी को राजस्थान सरकार ने राज्य वृक्ष का दर्जा दिया है। सरकार ने माना है कि खेजड़ी मरूस्थलीय क्षेत्र का महत्वपूर्ण वृक्ष है। तो भी खेजड़ी काटी क्यों जा रही. यह बात सही है सोलर ऊर्जा भारत की जरूरत है और यह नई ऊर्जा क्रांति है। खेजड़ी कटने से मरूस्थलीय पारिस्थितिकी पर होने वाले दुष्प्रभावों से सरकार वाकिफ भी है। फिर भी प्रशासन और सरकार महाभियान को लेकर मूक क्यों है सही स्थिति लोगों के समक्ष क्यो नहीं रख रही है। सोलर प्लांट की जरूरत और इसके सभी पक्षों को इन आन्दोलनकिरयों के सामने रखकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। अन्यथा विवाद बढ़ सकता है और काम में भी बाधा आ सकती है। इसी इलाके के निवासी कानाराम चौधरी ने आरोप लगाया है कि नाल, जयमलसर, नोखा दैया, भानीपुरा, बांद्रा वाला और रणधीसर गांव की लगभग 5000 बीघा सिंचित भूमि में से 15000 खेजडिया काट दी गई है। इसी तरह के आरोप और भी लोगों ने लगाए है। कई थानों में खेजड़ी काटने की पुलिस रिपोर्ट दर्ज है। कई अधिकारियों को आंदोलनकारियों ने लिखित रिपोर्ट दी है। मुख्यमंत्री, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री और विभागों के अधिकारियों को अवगत करवाया गया है। पिछले साल भर से ज्यादा समय से चल रही इस कवायद का सरकार के स्तर पर कोई असर नहीं हुआ है। खेजड़ी बचाने की आवाज नकार खाने में तूती ही साबित हुईं है। संघर्ष समिति के मोखराम धारणियां का कहना है कि इस मुद्दे पर वे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, देवी सिंह भाटी, राजस्थान सरकार के मंत्री सुमित गोदारा, डा. विश्वनाथ से भी मिले कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। पुलिस और प्रशासन तो सुन ही नहीं रहा है। यह मुद्दा दुश्चक्र में उलझा हुआ है। इसमें सोलर कंपनियों के दलाल, भू माफिया और बिचौलिए अप्रत्यक्ष में मुनाफे का खेल खेल रहे है जो प्रशासन और सरकार धरातल पर देख नहीं पा रही है। खेजड़ी मरुस्थल का अमी वृक्ष है। यहां की इकोलोजी का आधार स्तंभ माना गया है। खेजड़ी के कटने से मरूस्थल का पूरा प्राकृतिक चक्र प्रभावित होना ही है। खेजड़ी वन्य जीव जन्तुओ का भोजन और संरक्षण स्थली है। कटाई से इन पर मौजूद पक्षियों के घौंसले और उनके अंडे नष्ट हो रहे हैं ।                                                                                   
     राजस्थान सरकार को खेजड़ी नहीं कटे और सौर ऊर्जा प्लांट भी लगे ऐसा रास्ता निकाला चाहिए। जनता के रोष को अनदेखा कर खेजड़ियों की कटाई ठीक नहीं है। क्या सरकार को राज्य वृक्ष खेजड़ी के काटने पर रोक के कानून की फ़िक्र है। हाईकोर्ट के निर्देश, जन आस्था, प्रकृति चक्र में खेजड़ी की उपादेयता, कृषि में उपयोगी और पर्यावरण सुरक्षा के मायने तो सरकार को पता ही है। फिर भी सोलर ऊर्जा के उत्पादन के फायदे में खेजड़ी काटना जरूरी है तो जनता को बताएं तो सही। आन्दोलन की तैयारी के बीच चुप्पी ठीक नहीं है। जिला कलक्टर, प्रशासन और सरकार अपनी जिम्मेदारी को समझे। खेजड़ला में कमोबेश एक माह से इसी मुद्दे पर धरना चल रहा है। इसमें बीकानेर के अलावा नागौर और फलोदी से विश्नोई समाज के लोग और पर्यावरण संरक्षण में विश्वास रखने वाले लोगों का जमावड़ा है। सवाल यह है कि सरकार इनकी आवाज क्यों नहीं सुन रही है। क्या ये लोग गलत धरना दे रहे हैं या इनके मुद्दे झूठे अथवा राजनीति से दुष्प्रेरित है। सरकार खेजड़ी काटने की बात को किन्हीं कारणों से उचित मानती है तो इनको लॉजिक समझाकर धरना खत्म करवा दें। सौर ऊर्जा कंपनियों की ओर से खेजड़ी व अन्य पेड़ों की कटाई गलत है तो नोटिस लें। लोकतंत्र में सरकार का हिस्सा जनता भी है। जनता की आवाज को अनसुना करना नितांत गलत है। खेजड़ी की कटाई का जो आरोप जिम्मेदार लोग लगा रहे हैं या तो सरकार इसे गलत साबित करें। जयमलसर के पूर्व सरपंच रतीराम मेघवाल का सोशियल मीडिया के जरिए आरोप है कि नाल से लेकर ग्राम रणधीसर तक सभी गांवों में सोलर प्लांट लग रहे हैं हजारों बीघा भूमि वृक्षहीन कर दी गई है पेड़ काटने और प्लांट लगाने का काम जारी है। इस पीड़ा को सुनने और समझने को पटवारी, थानेदार, तहसीलदार और सरकार भी तैयार नहीं है। कानूनी कार्यवाही और रोकथाम तो दूर इस संबंध में प्रकृति प्रेमियों की तमाम लिखित शिकायतों का संतोषजनक जबाव तक नहीं मिल पा रहा है। सरकार सुनो। जिम्मेदारी प्रशासन और सरकार की ही है।

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