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एलियन कभी डरावने पात्र थे ! कोई मिल गया तो मित्रवत हुए...!!





























एलियन कभी डरावने पात्र थे ! कोई मिल गया तो मित्रवत हुए...!! 

दूसरे ग्रह के प्राणी इस धरा पर आते थे ? एलियन... ?  ? ? 

 जिन्हें हम आज एलियन संबोधन से जानने का प्रयास कर रहे हैं, क्या उनका अस्तित्व मानव सभ्यता के आदिकाल से रहा है ? 
ऐसे ही विचारो के साथ जब लोक कथाओं, पौराणिक कथाओं में कतिपय पात्रों की ओर ध्यान जाता है तो वे इस लोक के नहीं लगते। ऐसी कथाएं याद आ जाती हैं जिनमें उड़न खटोले और उड़ान भरते दैत्यों या देवताओं का जिक्र है। बोलने वाले जानवरों, उड़ने वाले मनुष्यों, पलभर में गायब हो जाने वाले पात्रों के कारनामों से भरी ऐसी कथाएं, लोक कथाएं प्राचीन काल में एलियन की संभावनाओं के नजरिये से सुनना, पढ़ना एक अलहदा रोमांच पैदा करती हैं। कतिपय जगहों का निर्माण रातोंरात हो जाने के बारे में भी आपने सुना ही होगा ! कुछ किंवदंतियों में तो ऐसे अजूबे प्राणियों का चित्रण डरावने पात्रों के रूप में भी सामने आता है। 

बीते वर्षों में एलियन के पात्र के साथ सेलोलाइड पर रची गई मायावी रचना देखने वालों के लिए एलियन डरावना नहीं बल्कि मित्र समान बन गया। खास तौर से बच्चों के साथ फिल्माए एलियन पात्र के सीन लोगों में एलियन के प्रति लगाव का भाव जगाने वाले रहे। फिल्म थी कोई मिल गया।


 आज किसी के लिए एलियन नया शब्द नहीं है। भले ही लाखों-करोड़ों में से किसी एक ने एलियन को देखा या अरबों-अरब ने नहीं देखा हो। एक और दुनिया भी है, वैज्ञानिकों की दुनिया। कितने ही वैज्ञानिक हर बात, हर पात्र, हर चीज को अपने नजरिये से, विभिन्न पहलुओं से देखते और संभावनाएं तलाशते रहते हैं। एलियन के बारे में भी विज्ञान की दुनिया में शोध कार्य चलते रहे हैं। आम आदमी के मन में भी ऐसे अनजान किंतु समाज पर अपना प्रभाव डालने वाले पात्रों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है। रोमांच होता है। इस रोमांच में वह जिज्ञासा भी पैदा होती है, जो यह सोचने पर विवश करती है कि क्या टनों-टन वजनी शिलाएं एक के ऊपर एक रख निर्माण हुए...! दुर्गम ऊंचे पहाड़ों की चोटी पर महल - किले या मंदिर बना दिए गए...!! ऐसे ही अनेक अन्य अजूबे कार्य किसी दूसरे ग्रह के प्राणियों के माध्यम से  संभव होते रहे ...। क्या तब दूसरे ग्रह के  प्राणी इस धरा पर आते थे जिन्हें हम आज एलियन संबोधन से जानने का प्रयास कर रहे हैं ! संभव है, इन और ऐसे  के उत्तर भविष्य में मिल जाएं। मगर आज तक तो यह प्रश्न अपने आप में कौतूहल भरे और अनुत्तरित हैं।

- मोहन थानवी 


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