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एक सेंगाल बीकानेर में भी है...
भरता है सेंगाल में प्रतिवर्ष विशाल मेला
जी हां बीकानेर में भी एक सेंगाल है। इस सेंगाल का भी धार्मिक पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। बीकानेर से कुछ ही किलोमीटर दूर नोखा के पास सेंगाल का धोरा है जहां महाशिवरात्रि पर विशाल मेला भरता है।
नई संसद भवन में प्रतिष्ठित सेंगोल के जो महत्व बताए गए हैं उनसे यह तो पता चलता है कि यह संतों तपस्वियों के पास भी होता है। और बीकानेर के नजदीक नोखा के पास इस सेंगाल धोरे पर महाराजजी ने भी तपस्या की थी और इसीलिए यहां और महत्वपूर्ण मूर्तियों की भी प्रतिष्ठा है।
बीकानेर के नजदीक स्थित इस सेंगाल में एक विशाल ख्यातनाम शिवालय है और 40 फीट गहरी एक गुफा भी है हालांकि इस गुफा में श्रद्धालुओं का प्रवेश नहीं हो पाता केवल साधु- संत महात्मा ही गुफा में जाते हैं।
यहाँ रूपनाथजी महाराज का मंदिर है। कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में गुरु बालकनाथ के नाम से ख्यातनाम ही रूपनाथजी हैं। इसके अलावा यहां गुरु गौरखनाथ, पाबूजी के भी मंदिर हैं। करीब दो दर्जन मूर्तियों की ( राधा-कृष्ण, गणेशजी, विश्वकर्मा, दुर्गामाता, काल भैरव आदि के साथ-साथ संतोष गिरि महाराज, सेफराज महाराज आदि की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई है।
इस स्थान का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व यहां खुदाई में निकली एक पुतली से भी लगाया जा सकता है। कहा जाता है की सिंहासन बत्तीसी वाली 32 पुतलियों में से एक पुतली यहां खुदाई में मिली थी। इससे यह भी कहा जा सकता है कि इस स्थान पर खुदाई और शोध से धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की अन्य अनेक बातें सामने आ सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नए संसद भवन में प्रतिष्ठित सेंगोल की महत्ता बहुत अधिक है और बीकानेर के नजदीक इस सेंगाल की महत्ता अपनी जगह है। दोनों के उच्चारण में भी अंतर है। यहां इस शब्द को सौ धोरों के बीच स्थित धोरे से लगाते हुए इसे सेंगाल धोरा कहा जाने लगा। शोध के बाद सामने आ सकता है कि सेंगाल शब्द सौ धोरों से है अथवा इसका भी अर्थ कहीं सेंगोल तक तो नहीं पहुंच रहा है ?
- मोहन थानवी
C P MEDIA
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