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राजस्थानी कहानियों का पंजाबी भाषा में अनुवाद होना ऐतिहासिक है- व्यास अनुवाद सांस्कृतिक एवं भाषायी अनुंष्ठान है-रंगा




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    राजस्थानी कहानियों का पंजाबी भाषा में अनुवाद होना ऐतिहासिक है- व्यास
अनुवाद सांस्कृतिक एवं भाषायी अनुंष्ठान है-रंगा 
      
बीकानेर 24 अप्रेल 2024
राजस्थानी साहित्य का अनुवाद के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों तक पहुंचना एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसी संदर्भ में वरिष्ठ साहित्यकार केसरा राम द्वारा राजस्थानी की प्रतिनिधि कहानियों का पंजाबी भाषा में अनुवाद एवं संपादन करना एक ऐतिहासिक कार्य है। इससे राजस्थानी कि आधुनिक कहानियों की सौरम पूरे देश के पंजाबी पाठको के बीच पहुंचेगी एवं साथ ही इस कार्य से दोनों भाषाओं के बीच भाषायी आदान-प्रदान को बल मिलेगा।

 यह उद्गार वरिष्ठ साहित्यकार-संपादक भवानी शंकर व्यास ‘विनोद‘ ने आज दोपहर पवनपुरी स्थित अपने आवास पर ‘कक्के रेते विच उग्गीयां बातां‘‘ राजस्थानी में ‘रेत में रमी हुयी बात्यां’ पुस्तक के लोकार्पण अवसर की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए।


वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक कमल रंगा ने कहा कि यह एक सांस्कृतिक एवं भाषायी अनुष्ठान है जिसे सम्पादक केसरा राम ने पूरा करते हुए राजस्थानी और पंजाबी भाषाओं के बीच एक सेतु का काम किया हैं। अनुवाद विधा मौलिक सृजन के समान है, ऐसे महत्वपूर्ण अनुवाद के माध्यम से ही राजस्थानी साहित्य की हर विधा को नए पाठक मिलेंगे। 


वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि इस महत्वपूर्ण अनुवाद की कृति में राजस्थानी के 25 प्रतिनिधि कहानिकारों की कहानियां का बेहतरीन अनुवाद हुआ है। जिससे राजस्थानी कहानियों को एक नया फलक मिला है। 


कवि एवं शिक्षाविद् संजय सांखला ने इस अवसर पर पुस्तक के सम्पादक-अनुवादक के व्यक्तित्व और कृत्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केसरा राम ने राजस्थानी से पंजाबी में करीब 10 से अधिक पुस्तकें का अनुवाद कर राजस्थानी साहित्य के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। 


वरिष्ठ शायर इरशाद अजीज ने कहा कि राजस्थानी कहानियों की अपनी एक मठोठ है, इसी मठोठ को पंजाबी पाठकों यह पुस्तक ले जाएगी।


युवा कवि गंगा बिशन बिश्नोई ने अनुवाद के माध्यम से अन्य भाषा के पाठकों तक पहुंचना सरल माध्यम है। जिसका एक अच्छा उदाहरण यह पुस्तक है।। 


इस मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुमन बिस्सा ने कहा कि अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद तो राजस्थानी में बहुत हुआ है परन्तु राजस्थानी साहित्य का अन्य भारतीय भाषाओं में तुलनात्मक बहुत कम अनुवाद हुआ है। हमे ंइस ओर सार्थक प्रयास करने चाहिए।


इस महत्वपूर्ण लोकार्पित कृति अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ उपन्यासकार आनन्द कौर व्यास, वरिष्ठ साहित्सकार प्रमिला गंगल, वरिष्ठ कवि राजाराम स्वर्णकार, एवं संस्कृतिकर्मी प्रेम नारायण व्यास आदि ने अपने विचार प्रगट करते हुए कहा कि इस अनुवाद के माध्यम से राजस्थानी एवं पंजाबी के पाठकों के बीच में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सौहार्द और अधिक होगा एवं आशा व्यक्त कि की भविष्य में राजस्थानी की अन्य विधाओं का भी पंजाबी में अनुवाद होगा।








 


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