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केंद्रीय मंत्री के नाम हेम की पाती : संस्कृति मंत्री अर्जुन जी राजस्थानी संस्कृति को तो बचा लो



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केंद्रीय मंत्री के नाम हेम की पाती : संस्कृति मंत्री अर्जुन जी राजस्थानी संस्कृति को तो बचा लो - 
                               
- हेम शर्मा 

 केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन राम जी क्या आप समझते हैं कि राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने से भाषाई संस्कृति बच सकेगी? संस्कृति लुप्त होने से राजस्थानी परंपराए, लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक कला, लोक मान्यताएं, लोक जीवन, लोक संस्कार, साहित्य और संस्कृति के विशद आयामों को बचाए रख पाएंगे? फिर आपका केंद्रीय संस्कृति मंत्री से राजस्थान का क्या हित हुआ? बता दें। भले ही आप राजनीतिक स्टंट और वोटो के लिए बीकानेर में राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह का उपक्रम करें। महामहिम राष्ट्रपति को बुलाकर अपना राजनीतिक पराक्रम दिखाने की कोशिश करें। राजस्थानी संस्कृति और भाषा की मान्यता के प्रति आपके रवैए से राजस्थानी के पैरोकारों में नाराजगी है। इसका आपको समय आने पर परिणाम भुगना ही पड़ेगा। राजस्थानी के साहित्यकार डा. चेतन स्वामी ने आपको सही आईना दिखाया है। सच में राजस्थानी भाषा की मान्यता के मुद्दे पर पूरा प्रदेश आप से खफा है। आपको सत्ता की जगमगाहट में इस नाराजगी का अभी अहसास नहीं हो पा रहा है। मंत्री जी वोटो के लिए किए गए वादों को रद्दी की टोकरी में डालना और भाषा पर आप जो छिछली राजनीति कर रहे हो उसके खिलाफ बिगुल बज चुका है। पूरे राजस्थान में संभाग और जिला मुख्यालय पर ही नहीं जहां तहां भाषा की मान्यता को लेकर मातृभाषा दिवस पर विरोध प्रदर्शन को आप समझ लेना। आपने ही सबसे ज्यादा राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर वादे और बड़ी बड़ी बातें की है। मान्यता के मुद्दे पर आपसे मिले लोगों को झूठे आश्वान दिए हैं। पराकाष्ठता तो तब हो गई कि आप डा. चेतन स्वामी को यह ज्ञान दे रहे हैं कि राजस्थान सरकार राजस्थानी को राजभाषा बनाएं। सवाल यह है की आपने भाषा को आठवीं सूची में शामिल करवाने में केंद्रीय संस्कृति मंत्री के रूप में क्या किया है? गहलोत सरकार ने तो विधानसभा में राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से केंद्र को भेजा हुआ है। दरअसल आप कुछ भी नहीं कर पाएं हैं। आप नहीं समझ रहे हैं कि छिछली राजनीति से राजस्थानी भाषा को कितना नुकसान हुआ है। आप फिर इसी के भागीदार बन रहे हैं। किसी क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान उस क्षेत्र की भाषा ही होती है। क्या आपके राजस्थान से केंद्रीय संस्कृति मंत्री बनने के बावजूद राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलने से राजस्थान की भावी पीढ़ी आपको लानत नहीं देगी? सोच लें। राजस्थानी समृद्ध भाषा है। ये शब्दों और व्याकरण से परिपूर्ण है। अपना शब्दकोश है। लोक हृदय की धड़कन है। इसकी महत्ता को आप खुद जानते हैं। पर मान नहीं रहे है। डा.चेतन स्वामी, श्याम महर्षि, डा. गौरी शंकर प्रजापत, राजू राम बिजारनिया, डा. हरीराम विश्नोई, हरिमोहन सारस्वत, मनोज स्वामी, राज कुमार रोवंनजोगो, डा कृष्ण लाल, राजेंद्र चौधरी, राजवीर बिठ्ठू, प्रशांत जैन, लीलाधर सोनी, रमेश उपाध्याय, राम शर्मा, मदन दासोडी सरीखे 100 _50 लोग ही राजस्थानी के मुद्दे पर सत्ता को झुकाने के लिए पर्याप्त है। अब केंद्रीय मंत्री से जनता इस मुद्दे पर आकंठ आ चुकी है।संघर्ष का फिर बिगुल बज उठा हैं। आपको आईना दिखाने का वक्त आने ही वाला है। संभल जाओ। आप भले आदमी हो!




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