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माघ महोत्सव के तहत समारोह : वेद और महिलाओं पर हुआ विमर्श संस्कृत साहित्य के सुधा कलश हैं महाकवि माघ : डॉ. कल्ला



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🖍️माघ महोत्सव के तहत समारोह : वेद और महिलाओं पर हुआ विमर्श


संस्कृत साहित्य के सुधा कलश हैं महाकवि माघ : डॉ. कल्ला

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माघ महोत्सव के तहत समारोह : वेद और महिलाओं पर हुआ विमर्श

संस्कृत साहित्य के सुधा कलश हैं महाकवि माघ : डॉ. कल्ला


वेद और महिलाओं पर हुआ विमर्श

बीकानेर, 12 फरवरी । राजस्थान के भीनमाल में जन्मे महाकवि माघ उपमा, अर्थ गंभीरता और पद लालित्य की त्रिवेणी है।
 इनके द्वारा लिख गया महाकाव्य 'शिशुपालवधम्' का संस्कृत साहित्य में वही स्थान है ,जो वेदों में सामवेद का है। महाकवि माघ संस्कृत साहित्य के सुधा कलश और मानवीय मूल्यों के प्रेरक हैं। 

महाकवि माघ और कालीदास को पढ़ते-पढ़ते सारा जीवन व्यतीत हो जाता है। माघ महोत्सव के अंतर्गत आयोजित राष्ट्रीय वेद सम्मेलन में महिलाओं पर विमर्श होना महिलाओं की प्रभुता को प्रमाणित करने वाला सिद्ध होगा। यह बात माघ महोत्सव- 2023 के अंतर्गत राजस्थान संस्कृत अकादमी, कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा टाउन हॉल, बीकानेर में आयोजित राष्ट्रीय वेद सम्मेलन के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए संस्कृत शिक्षा, कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने कही।


सम्मेलन में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. राजेश्वर मिश्र ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि वेदों में नारी को सृष्टि के सृजन में ब्रह्मा के समान माना गया है। नारी का एक नाम 'जाया' है। उसके बिना सृष्टि की उत्पत्ति संभव नहीं है। शतपथब्राह्मण जैसे ग्रंथ में नारी को एक रथ के दो पहिए के रूप में विश्लेषण किया गया है। अर्धनारीश्वर का स्वरूप शक्ति की ही महत्ता को दर्शाता है। वेदों ने नारी की जनन शक्ति की महत्ता को गाया है और उसकी श्रेष्ठता को बताया है।


जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सरोज कौशल ने कहा कि विशिष्ट वक्ता के रूप में वैदिक ऋषिकाओं के 
विशिष्टता को रेखांकित करते हुए कहा कि अदिति, घोषा, रोमशा लोपामुद्रा, श्रद्धा, शाश्वती आदि ने जिन मंत्रों का साक्षात्कार किया, उसमें विद्या अध्ययन से लेकर गृहस्थाश्रम तक आचरणों का सुन्दर वर्णन किया गया है। अपाला ने अपने शरीर की कुरूपता को तप से दूर कर सबको चकित कर दिया। लोपामुद्रा ने ययाति को दाम्पत्य का अभूतपूर्व संदेश दिया।वागाम्भृणी के स्वाभिमान के प्रसंग में वे राष्ट्री अर्थात् राज्य की अधिष्ठात्री हैं।


 कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में संस्कृत अकादमी की अध्यक्ष डॉ सरोज कोचर ने कहा कि यह नारी ही है, जो बच्चों को देवता और दानव बनाती है । उन्होंने कश्यप ऋषि की पुत्री अदिति और दिति का उदाहरण देते हुए कहा यह नारी द्वारा गर्भस्थ शिशु को दिए गए संस्कार और लालन-पालन ही था, जिसके कारण अदिति के पुत्र देवता हुए और दिति के पुत्र दैत्य हुए । अगर नारी गर्भस्थ शिशु को संस्कार देती है तो पीढ़ियां सन्मार्ग पर चलती है । 


कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए जयपुर के जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कहा की माता की तुलना देवताओं से की गई है। वह जीवनदायिनी, संस्कारदायिनी व ज्ञानदायिनी है। संस्कृत अकादमी के निदेशक संजय झाला ने संस्कृत भाषा के प्रसार की जरूरत बताते हुए लोगों से संस्कृत ग्रंथों से जुड़ने का आह्वान किया।


इससे पूर्व बजट में मुखयमंत्री अशोक गहलोत द्वारा 17 वेद विद्यालय व 19 संस्कृत महाविद्यालय शुरू करने पर संस्कृत शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला का स्वागत किया। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट काम करने वाली महिलाओं का सम्मान किया गया। संयोजन व संचालन बनवारी लाल शर्मा ने किया।

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