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जीव मैत्री का भाव हमारे जिन शासन का सार - आचार्य विजयराज


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जीव मैत्री का भाव हमारे जिन शासन का सार - आचार्य विजयराज जी म.सा.
हर जीव से आत्मियता का भाव होना चाहिए
जैन धर्म की जय-जयकार के साथ पैदल विहार कर गंगाशहर पहुंचे आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
बीकानेर। धर्म का लेबल नहीं होता, भक्ति और भावना का लेबल नहीं होता है। ना ही लेबल होना चाहिए। क्योंकि, लेबल संकीर्णता प्रदान करने वाला बन जाता है। संसार के जितने भी प्राणी एकेन्द्री से पंचेन्द्री, नारकीय से स्वर्गीय की अपनी आत्मा  के तुल्य मानने लग जाते हैं तो आत्मा में विराटता आ जाती है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह सद्ज्ञान गंगाशहर में विहार कर पधारने के बाद बोथरा कोटड़ी में श्रावक- श्राविकाओं को दिया। आचार्य श्री विजयराज जी सोमवार सुबह पवनपुरी से विहार करते हुए गंगाशहर पधारे। जहां उन्होंने बड़ी संख्या में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं को धर्म उपदेश दिया। महाराज साहब ने फरमाया कि जीव मैत्री का भाव हमारे जिन शासन का सार है। संसार में कोई जीव  पराया नहीं होता, अजीव कभी अपना नहीं होता। हम शिव को पराया मानते हैं तो हमारे अंदर जीव मैत्री का भाव पैदा नहीं होता। जीव से मैत्री का भाव, प्रेम का भाव, आत्मियता का भाव होना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि संसार में सभी को अपने आत्म तुल्य मानना चाहिए। जहां धर्म का विस्तार है, वहां साम्प्रदायिकता की क्षुद्धता नहीं आती है।
व्यक्ति जैसे-जैसे ऊपर उठता है, उसकी व्यापकता बढ़ती जाती है। यही धर्म हमें सिखाता है। संकीर्णता मन में है तो इसका मतलब यह है कि हमने धर्म को नहीं समझा। धर्म कहता है जीव मात्र से प्यार करो। प्राणी मात्र को अपना समझो, समय और परिस्थिति बदलती है तो अपने पराए हो जाते हैं और पराए अपने हो जाते हैं।
महाराज साहब ने फरमाया कि यह प्रभु का संदेश है, जो दूसरों के आश्रयों को नहीं देखता वह पाप कर्म का बंध नहीं करता।
औपचारिकता ना बने सामायिक प्रतिक्रमण
आचार्य श्री ने फरमाया कि आप भले ही सामायिक करें, प्रतिक्रमण करें यह सब हमारे लिए तब औपचारिकता बनकर रह जाती है, जब हम दूरियों- दुखों में जीते हैं।  औपचारिकता से भरे धर्म में वह आनन्द नहीं जो वास्तविक धर्म में आता है।
वास्वविकता में हो यह रहा है कि हम अजीव को अपना मानते हैं, यह हमारा बहुत बड़ा व्यामोह है। यह मेरापन कभी दुखों का अंत नहीं करता।
शरीर संसार की अमानत
शरीर संसार की अमानत है। आयुष्य पूरा होते ही आत्मा निकल जाती है। लोग शरीर को जला देते हैं, पानी में बहा देते हैं। प्राण निकल जाने के बाद तीर्थकंरों के शरीर को भी जला दिया जाता है। क्योंकि सबको मालूम है, शरीर में आत्मा है तब तक ही शरीर का मोह है, उपयोग है।
आचार्य श्री ने घरों में किए पगलिए
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब सोमवार सुबह पवनपुरी से पैदल विहार कर गंगाशहर मुख्य बाजार स्थित बोथरा कोटड़ी पहुंचे। इस दौरान उनके साथ बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं साथ थे। महाराज साहब ने राह में अनेक स्थानों पर जैन समाज के घरों में पहुंचकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया एवं मंगलिक दी। इस दौरान पूरे मार्ग में जिन शासन और विजय गुरु महाराज के जयकारों से माहौल धर्ममय रहा।
मगन कोचर को दी जैन रत्न की उपमा
आचार्य श्री ने विहार के दौरान उनके दर्शन लाभ लेने पधारे प्रसिद्ध भजन गायक मगन कोचर को जैन रत्न कहकर संबोधित किया और इस उपमा से नवाजा। इस पर समाज के अनेक लोगों ने प्रसन्नता जताई।
मंगलवार की महामंगलिक एवं प्रवास सांड नवकार पौषधशाला में
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक युवा संघ गंगाशहर- भीनासर अध्यक्ष महावीर गिडिय़ा ने बताया कि आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. मंगलवार सुबह का प्रवचन बोथरा कोटड़ी में ही देंगे। तत्पश्चात महाराज साहब विहार कर गंगाशहर मुख्य बाजार रोशनीघर के सामने संघ के लिए हाल ही में नवरतन सांड द्वारा समर्पित सांड नवकार पौषधशाला- भवन में  विराजेगें, जहां दोपहर की महामंगलिक भी देंगे। इससे पूर्व गंगाशहर-भीनासर संघ के अध्यक्ष मेघराज सेठिया  सहित गणमान्यजनों ने महाराज साहब के आगमन पर अपने भाव व्यक्त कर,ज्यादा से ज्यादा सेवा लाभ देने की कामना की।


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