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इनकी परीक्षा (चुनाव) पर स्टे क्यों नहीं...!
मोहन थानवी
राज कला में भी विभिन्न विधाएं हैं। कला संकाय मानिंद। इस संकाय में अभिव्यक्ति के लिए बहुतेरे मार्ग प्रशस्त हैं। कोई शंका नहीं। वाणिज्य संकाय और विज्ञान संकाय में भी बेशुमार कलाएं होना बताया जाता है। राज करने की कला ऐसी सभी कलाओं के ज्ञाता को सहज आ सकती है। इसके मायना ये कतई नहीं कि राज कला में पारंगत स्कूल-कालेज में भी अव्वल रहा हो। व्यावहारिक शिक्षा के हामी इस बात को बखूबी जानते-समझते हैं। किताबों को पढ़ रट कर व्यावहारिक ज्ञान हासिल नहीं होता।
जब तक व्यावहारिक ज्ञान न हो, कलाकार अपने विचार, अपनी प्रतिभा को वांछित रूप से अभिव्यक्त कर सकने में बाधाएं महसूसेगा। आमजन चुनावों को घोषणा कलाज्ञाता भर्ती परीक्षा कहें तो भला क्या गलत है? इस परीक्षा में एक दिन के लिए पासआउट को भी सात पीढ़ियों तक के लिए सुरक्षित और नियमित आय-आरक्षण मिल जाता है। क्या यह लोकतंत्र का अंधकूप नहीं है?
बाधाएं राज कला में असफलता की ओर ले जाने वाली मानी जाती है। बाधाओं के बगैर राज कला में पारंगत की पहचान भी नहीं हो पाती। अजीब गोरखधंधा है। विपक्षी की योजना को जन विरोधी बताओ। खुद राज में आओ और उसी योजना को दूसरे लिफाफे में लपेट कर जन हित में पेश कर दो। गोरखधंधा यहीं नहीं रुकता। दूसरे लिफाफे में लपेटी अपनी ही योजना को भी राज कला में पारंगत जन नेतृत्व करने वाले बेशुमार नुक्सों भरा बता देते हैं। यही तो बाधाएं पार करने की कला है। राज कला। इसका एक महत्वपूर्ण पीरियड है, घोषणा कला। जो नेता घोषणा करना नहीं जानता वह जनप्रिय नहीं माना जाता। कोई नेता घोषणाएं तो बहुतेरी कर लेता है लेकिन पूरी नहीं कर पाता वह थोथी घोषणाएं करने वाले के रूप में विख्यात हो जाता है। उसका वोट बैंक रीता रहता है। समृद्ध नहीं होता। गरीब रहता है। जो अवसर पर, सटीक अवसर पर सटीक घोषणाएं करता है, वो नेता सभी का चहेता होने का दम भरता है।
ऐसी घोषणा कला के ज्ञाता जानते हैं, चुनावी घोषणाएं कब से की जानी चाहिए। जैसा कि पब्लिक सब जानती है। इन दिनों पंच वर्षीय महा लोक तंत्र कुंभ रूपी चुनाव के स्वागत में खूब योजनाएं कागजों पर बन कर कंठों से स्वर पा कर जन जन तक पहुंचने की छटाएं दिखा रही हैं। किसी बस्ती के विकास के लिए जहां हजारों के टोटे पड़े रहते हैं वहां अब लाखों की बातों के तोते उड़ाए जाने लगे हैं। यही तो है घोषणा कला की बानगी। बहुत ही आम किस्म की बानगी। उच्च कोटि की घोषणाओं की बानगी भी पब्लिक जानती है। ऐसी घोषणाएं सरकार की आर्थिक सेहत को दीर्घावधि तक प्रभावित करने वाली भी हो सकती हैं, जिनको अमलीजामा पहनाना घोषणा करने वाली सत्तासीन पार्टी के नेताओं को भी दुष्कर लगने लगता है।
मगर ऐसी घोषणाएं इसलिए भी की जाती हैं कि खुदा न ख्वास्ता विपक्ष में बैठना पड़ जाए तो जनता को कहा जा सके कि भाई, वोट हमें देते तो हम ये कर देते, वो कर देते, यूं कर देते वैसे कर देते। अब की हमें वोट दीजिएगा, हम वो सब कर देंगे। जादू की चुटकी से। चुटकी और जादू का करिश्मा एक साथ। बार बार । लगातार। पब्लिक सब जानती है। राज कला संकाय पढ़ती है। घोषणा कला का पीरियड भी जनता को मालूम है। जय जय।
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