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राजस्थानी हमारी जनभावना एवं पहचान है, कोरोना काल में ई-तकनीक से परिसंवाद

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प्रज्ञालय संस्थान, बीकानेर
राजस्थानी हमारी जनभावना एवं पहचान है
बीकानेर 1 अप्रैल 2021
प्रज्ञालय संस्थान एवं शबनम साहित्य परिषद् के साझा आयोजन के क्रम में एक ई-परिसंवाद का राज्य स्तरीय विचार विमर्श किया गया।
कोरोना काल में ई-तकनीक से परिसंवाद विषय ‘‘राजस्थानी भाषा और ‘‘जनभावना’’ पर अपने विचार रखते हुए कवि कथाकार कमल रंगा ने कहा कि करोड़ो लोगों की मातृभाषा राजस्थानी जनभावना तो है ही साथ ही अस्मिता का सवाल भी है। ऐसे में राजस्थानी को मान्यता शीघ्र मिलनी चाहिए। परिसंवाद में अपने विचार भेजते हुए डूगरपुर के कथाकार दिनेश पंचाल ने कहा कि मान्यता न मिलना दुरभाग्य पूर्ण है। हमें इसके लिए और प्रयास करने होगे। पोकरण के गीतकार नवल जोशी ने कहा कि मान्यता आंदोलन को गांव ढाणी तक ले जाना होगा और जनता को अपने वोट की ताकत बतानी होगी। नागौर के साहित्यकार पवन पहाड़िया ने कहा कि सरकारों को राजस्थानी की उपेक्षा बंद करनी चाहिए। सुजानगढ़ के कवि कथाकार डाॅ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि जब 2003 से संकल्प पारित है फिर भी मान्यता न मिलना गलत है। 
 परलीका के साहित्यकार विनोद स्वामी ने कहा कि राजस्थानी राजभाषा बनेगी तभी असली आजादी मिलेगी। सोजत के साहित्यकार एवं शबनम साहित्य परिषद् के निदेशक अब्दुल समद राही ने कहा कि हमें सामूहिक रूप से जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाना होगा। तो कोटा के विजय जोशी ने कहा कि राजस्थानी मान्यता मिलने पर ही असल विकास होगा। डीडवाना के कवि नटवर पारीक ने कहा कि भाषा हमारा गौरव है उदयपुर की रेणु सिरोयां कुमुदिनी ने मान्यता की सशक्त पैरौकारी करी। बांसवाडा के साहित्यकार सतीश आचार्य ने कहा कि भाषा हमारी पहचान है। इसी क्रम में जोधपुर की साहित्यकारा डाॅ. जैबा रशीद ने कहा कि इतनी समृद्ध भाषा को मान्यता न देना भाषा के प्रति खिलवाड है। 


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