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"गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी ही उनकी आर्थिक नीतियों और ग्राम स्वराज के मॉडल के आलोचक रहे उन्होंने उसे नकार दिया" "गांधी और अम्बेडकर के बीच संवाद की जरूरत है उसी तरह गांधी और भगत के बीच भी संवाद की जरूरत है"

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"गांधी और अम्बेडकर के बीच संवाद की जरूरत है उसी तरह गांधी और भगत के बीच भी संवाद की जरूरत है" 
2 अक्टूबर1869 को जन्मा यह शख्स जिसे मोहनदास कहा गया, 30 जनवरी1948 को उसकी हत्या कर दी गई । दुबला पतला यह फकीर जिसके बारे में दुनियां के बड़े बड़े लोग यह कहते है कि वे हमारे प्रेरणास्रोत है । पिछले सौ सालों में दुनियां भर में वे सबसे ज्यादा याद किए जाने वाले भारतीय है ।

गांधी के खुद के देश में उनके समर्थकों और विरोधियों की बड़ी संख्या है । बहुत से लोग गांधी को सीरे से ही नकार देते है । ऐसा करने वालों में कभी मैं खुद भी था , लेकिन ज्यों ज्यों गांधी को जाना , भारत को जाना, इतिहास को जाना त्यों त्यों गांधी का हो गया ।

मुझे लगता है गांधी भारत के मूल विचार का प्रतिनिधित्व करते है । वे कोई नया विचार या वाद नहीं देते वे वही बात कहते है जो भारत की हजारों सालों की सनातनी परम्परा से परिष्कृत होकर निकली बात हो । वे धार्मिक व्यक्ति थे इसलिए वेद, उपनिषद, पुराण, गीता ही नहीं कुरान , बाइबिल और दूसरे धार्मिक ग्रंथों की बातों के सारतत्व को अपने प्रवचनों में , भाषणों में, लेखों में कहते रहे ।

गांधी के जाने के सत्तर सालों बाद गांधी की प्रासंगिकता पर बार बार चर्चा होना ही इस बात का प्रमाण है कि वो प्रासंगिक तो है ही । आज भी अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए गांधी द्वारा आविष्कृत हथियार " सत्याग्रह " , भारत ही नहीं पूरी दुनियां में सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाता है और उसके सफलतम परिणाम भी हासिल होते है ।

लेकिन 79 सालों तक इस धरती पर जिंदा रहे उस दुबले पतले आदमी को बार बार हमें याद करने की जरूरत क्यों पड़ती है जबकि उस दौर में एक नौजवान ने गोली मार कर उसकी हत्या कर दी थी ।दरअसल गोडसे की गोली ने गांधी के शरीर को तो गोली मारकर खत्म कर दिया लेकिन गांधी तो सदा के लिए अमर हो गए । गोडसे की पिस्तौल से निकली गोली से गांधी मरे नहीं , गांधी फैल गए , प्रसारित हो गए । पूरी दुनिया के लिए प्रेम अहिंसा शांति का संदेश देने के प्रतीक के रूप में बुद्ध और महावीर की तरह ही वे भारत के प्रतीक बन गए ।

गांधी के खुद के देश में उन पर बहुत विवाद होते है । गांधी और भगत सिंह के बारे में , गांधी और अम्बेडकर के बारे में , उनके अहिंसा के विचार के बारे में , उनकी आर्थिक नीतियों के बारे में , उनके ग्राम स्वराज के मॉडल के बारे में और भी न जाने कितने कितने विवाद ।

भगत सिंह का एक कोट है , "क्रांति बम और पिस्तौल से नहीं आती वह तो विचार की धार पर तीखी होती है ।" गांधी और भगत के विवाद पर चर्चा करने वाले लोग भगत के इस कोट को ही नहीं पढ़े होंगे । हालांकि मादरे वतन को गुलामी से मुक्ति का मार्ग दोनों का अलग अलग था , रास्ते अलग अलग थे लेकिन एक तेईस साल के नौजवान के मुकाबिल साठ साल के गांधी के विचारों में भिन्नता होनी तो स्वाभाविक ही थी । यद्यपि अपनी उम्र से कई गुना अधिक वैचारिक परिपक्वता रखने वाले भगत सिंह अगर कई साल और जिंदा रहते तो निश्चित ही उनके विचारों में भी बदलाव आता और सम्भव है वे गांधी के विचार के और निकट होते । लाहौर असेम्बली बम कांड के बाद भगत सिंहकी कही बात गौर करने लायक है , उन्होंने कहा था कि बम उन्होंने किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं फोड़ा बल्कि गूंगी बहरी हुकूमत के कान खोलने की लिए फोड़ा है । मतलब बिरतानी हुकूमत के विरुद्ध , साम्राज्यवाद के विरुद्ध भगत का हथियार भले ही गांधी से भिन्न हो लेकिन विचार में बहुत ज्यादा दूरी नहीं थी ।

दुनिया भर में क्रांति के प्रतीक और साम्राज्यवाद के खिलाफ खूनी लड़ाई लड़ने वाले चे ग्वेरा अपने आखिरी सालों में जब भारत यात्रा पर आए तब चे ने भी यही कहा कि ,"भारत के पास गांधी है और हमारे पास वो नहीं है ।"

बाबा साहब अम्बेडकर भी पिछली सदी के उन महान भारतीयों में से है जिन्होंने अपने प्रयासों से समाज में बड़ा बदलाव किया । हजारों सालों से समाज की मुख्यधारा से विलख हो चुके एक विशाल तबके को अपनी लड़ाई से मुख्यधारा में स्थान दिलाया और मानव अधिकारों और स्वाभिमान के इस संघर्ष में उन्होंने बड़ी सफलता पाई । समकालीन गांधी के साथ उनकी विचारभिन्नता रही । यद्यपि अम्बेडकर जो काम कर रहे थे गांधी भी उसके हिमायती थे लेकिन उनके रास्ते अलग थे । गांधी का केनवास बड़ा था, उनके उद्देश्य बड़े थे इन अर्थों में अंबेडकर के काम को छोटा करके आंकने का अर्थ नहीं है बल्कि यह स्पष्ट करना है कि गांधी का प्रयोजन पूरे भारत के सभी वर्गों के लिए था और अम्बेडकर एक वर्ग के लिए संघर्षरत थे बावजूद इसके मैं यह कहने में संकोच नहीं करूंगा कि अम्बेडकर ने जो काम कानून के माध्यम से किया उसे समाज में व्यवहार रूप में मान्यता दिलाने का प्लेटफॉर्म बनाने में गांधी की बड़ी भूमिका रही । उस दौर के समाज सुधारकों ने छुआछूत निवारण और समता का जो आंदोलन समाज के दूसरे वर्गों में चलाया उसमें गांधी प्रमुख थे तथा गांधी की खूबी यह थी कि वे केवल भाषणों से परिवर्तन की बात नहीं करते थे बल्कि व्यवहार रूप में खुद पर अपने साथियों पर लागू करते थे ।

गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी ही उनकी आर्थिक नीतियों और ग्राम स्वराज के मॉडल के आलोचक रहे उन्होंने उसे नकार दिया । उन्होंने शुरू में जिस औद्योगिकरण और शहरीकरण के मॉडल को अपनाया और बाद में उदारीकरण, निजीकरण के रास्ते को पकड़ा उसकी विफलता नजर आने लगी है ।

खासतौर से कोरोना काल में हमें एक बार फिर से गांधी के विचारों को परखने के चिंतन करने का मौका दिया है । कोरोना से दुनियाभर में बिगड़े हालातों के बारे में सौ साल पहले गांधी चेताते रहे । अंधाधुंध बाजारवाद , औद्योगिकरण , शहरीकरण , उपभोक्तावाद , पूंजीवाद के दुष्प्रभाव इन सब पर गांधी ने उस समय ही चेता दिया था । गांधी संयमित जीवन और मितव्ययता की बात करते थे । गांधी का ग्राम स्वराज का मॉडल भारत के सर्वाधिक अनुकूल मॉडल था जो आत्मनिर्भर गांवों की बात करता था लेकिन हमारे नीति निर्माताओं ने पहले गांवों की भीड़ को शहरों में बढ़ाने और फिर गांवों के शहरीकरण का जो अभियान चलाया उसके भारी दुष्परिणाम सामने आए ।

करोड़ो मजदूरों का शहरों से गांवों में पलायन इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी होगी ।

खैर गांधी की 151 वीं जयंती मनाते हुए हम उस शख्स को याद करें यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि उनके विचार जिसे दुनियाभर में मान्यता मिली है उनको कितना आत्मसात करते है । अब जबकि गांधी भगत अंबेडकर उनके साथी कोई इस दुनियां में नहीं है तब क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता कि उनके विचारों के बीच संवाद कायम करें । मैं कई बार यह बात दोहराता हूं गांधी और अम्बेडकर के बीच संवाद की जरूरत है उसी तरह गांधी और भगत के बीच भी संवाद की जरूरत है ।

क्या हम इन संवादों के जरिए विवादित मसलों का समाधान नहीं निकाल सकते ? क्या हम इस देश एयर दुनिया के लिए उपयोगी उनके विचारों का सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकते ? क्या हम फिर एक बार उनके आर्थिक राजनीतिक चिंतन को आज के परिपेक्ष्य में कसौटी पर कसकर उस पर विचार नहीं कर सकते ?

अगर ऐसा हम कर पाए तो जयन्तियां भी सार्थक होगी और उन महान लोगों से विचार उनके चिंतन का लाभ भावी पीढ़ी को मिल पाएगा ।

-सुरेंद्रसिंह शेखावत 

 ✍️

हैलो राजस्थान 
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