धैर्यवान काठ की हाँडी बार बार खुद को आग से परे रहकर जलने से बचती और खिचड़ी पकाकर स्वार्थी को देती रही। एक दिन उसे लोगोँ को बेवकूफ बनाने वाले स्वार्थी पर हँसी आ गई। उसने स्वार्थी की खिचड़ी नष्ट कर अपनी महत्ता बताकर ख्याति पाने की गरज से आग से दूरी घटा ली। वो अधिक देर मुस्करा न सकी और जल गई।
अट्टृ – काठ की हाँडी क्योँ मुस्कराई?
पट्टृ – स्वार्थी को हदेँ पार करने मेँ लाज न आती देख।
अट्टृ – फिर जली क्योँ?
पट्टृ – खुद भी स्वार्थी होकर।
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अट्टू बीमार पत्नी पट्टू की तीमारदारी करते करते खुद बीमार हो गया। सेवा की बारी पत्नी की थी। पट्टू – ऐ जी उठो, नीँद की गोली खाए बिना ही सो गए।
अट्टृ – काठ की हाँडी क्योँ मुस्कराई?
पट्टृ – स्वार्थी को हदेँ पार करने मेँ लाज न आती देख।
अट्टृ – फिर जली क्योँ?
पट्टृ – खुद भी स्वार्थी होकर।
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अट्टू बीमार पत्नी पट्टू की तीमारदारी करते करते खुद बीमार हो गया। सेवा की बारी पत्नी की थी। पट्टू – ऐ जी उठो, नीँद की गोली खाए बिना ही सो गए।
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