राजकला
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Mohan Thanvi |
राज की कला। राजनीति। राज कला। यूं राज कला मंदिर की फिल्में भी हिट हुई हैं। राजनीति तो हिट है ही। राजनीति को तो हिट किया ही जाता है। कुर्सीधारी भी राजनीति को हिट करते हैं। कुर्सी पूजक भी। कुर्सीधारी वो जो जनता के वोट जुटा कर कुर्सी पर विराजमान हो। कुर्सी पूजक वो जो कुर्सी पर विराजमान की पूजा करने से न चूकता हो। दोनों कार्य राज की कला है। राज करने की कला। राज में न होते हुए भी ऐसी कला जानने वाले राज करते हैं। जो राज नहीं कर पाते वे फुटबाल के जैसे हिट लगा कर हरफनमौला खिलाड़ी की तरह अपनी कलाकारी दिखाते हैं। नियुक्तियों में, पदोन्नतियों में, स्थानांतरण में, आबंटन उपाबंटन में ऐसे ही राज कलाकारों की तूती बोलती है। ये पांच वर्ष की अवधि से भी बंधे नहीं होते। हां, पांच वर्ष के संक्रमण काल में ऐसी कला के ज्ञाता कुछ राज खोलने पर आमादा दिखते हैं। खोलते नहीं। अपनी अपनी पार्टी से बंधे ऐसे राज दार पार्टी के खूंटे से खुलने के लिए छटपटाते हैं। कुछ राजनीति से, कुछ राज दारी से अपनी पार्टी के हित में दूसरी पार्टी से जुड़ने की कला का प्रदर्शन करते हैं। यह भी राज कला ही मानी जाने योग्य है। कुछ गंभीर, गहरे राज दार, राज कला के माहिर, समाज में अपनी पैठ रखने वाले, अपने साथी राज कलाकारों से राज नेताओं समान पक्की गांठ बांधने वाले गठबंधन की तैयारी भी करते हैं। बहुत से राज कलाकार नए गठबंधन में कामयाब भी हो जाते हैं। ऐसी गतिविधियां लोकतंत्र के पंचवर्षीय कुंभ के आगाज के अनुष्ठान होती हैं। जो कि इन दिनों होती दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस और भाजपा के अलावा अब तक तीसरी पार्टी ने राजस्थान पर राज करने का सुख नहीं भोगा। इस सुख से वंचित रही पार्टियां इसे पाने के लिए यत्न करने से पीछे नहीं रह सकती तो तीसरे मोर्चे के रूप में भी कुछ राज नेता अपनी जगह सिंहासन पर देखने के लिए प्रयत्नशील हैं। राजकला 64 कलाओं से भी आगे की चीज है। इसके आगे चंद्रमा की कलाएं भी फीकी पड़ सकती हैं। रंगकर्म की 16 कलाओं में कलम और विचार के माध्यम से समाज और राष्ट्र में क्रांति लाने का माद्दा है तो एकमात्र राज कला में गली गली में, घर घर में, भाई भाई में राजनीतिक क्रांति लाने का। इसलिए राज कला आज राज कर रही है। जनता के वोट भी इसके आगे नतमस्तक दिखने लगते हैं। जनता केवल दो ही पार्टियों में से पसंद और नापसंद का चुनाव करने को उद्यत रहती है मगर राज कला में माहिर कलाकार जनता को दो की बजाय 12 में से पसंद नापसंद की चॉइस उपलब्ध कराते हैं। इसके फायदे अनुभवी पार्टियां जानती हैं। देखना यह है कि ये जो पब्लिक है सब जानने के बाद भी राजनीति में कितने किले और बनते देखेगी। तब तक राज राज ही रहेगा। - राजकला
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