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अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर

अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर    

आज नहीं, प्राचीन काल से कहा जाता है, छोटे मुंह बड़ी बात। इसका प्रचलन बने रहना यानी छोटे मुंह बड़ी बात के उदाहरण सामने आते रहना मनुष्य की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। सामाजिक या वाणिज्यिक जीवन में ऐसे चरित्र कम किंतु राजनीति से जुड़े और प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रवृत्ति वाले लोगों में इस तरह की बातें सामने आ ही जाती है जब लोग स्वतः कह उठते हैं, अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर। दरअसल किसी भी वर्ग के कार्यक्षेत्र से जुड़ी शख्सियत के जीवन में टर्निंग पॉइंट प्रायः तब दिखाई देता है जब नवागंतुक साथी उसे पीछे धकेलने को उद्यत होते हैं। राजकीय आश्रय से संचालित कार्यालयों या निजी क्षेत्र,  कारपोरेट जगत में  कामगारों की वरीयता को कनिष्ठ साथी चुनौती देते दिखते हैं। काम कम पारिश्रमिक अधिक, अनुभव और कार्य के प्रति निष्ठा में कमी, ईगो में वरिष्ठ से 21 रहकर खुद को साबित करने की भावना प्रदर्शित करने में तनिक भी देर नहीं करना। ऐसे लोगों की एकाधिकार और शोषण की प्रबल भावना छिपाए नहीं छिपती लेकिन विद्वान कह गए हैं, अंत बुरे का बुरा। आखिरकार निर्णायक घड़ी आ ही जाती है और नया नौ दिन पुराना सौ दिन की बात सिद्ध होकर भावी पीढ़ी को शिक्षित करती है। अंत भला सो भला।

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