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ताउम्र साथ रहता है बचपन...

बचपन
खेल-खिलौनों तक ही नहीं सिमटा रहता बचपन
दादी -नानी और दादा -दादी के साथ बीतता है बचपन
कहानियों के दौर से भी आगे यादें समेटता है बचपन
ज्ञानार्जन करता है बड़े भाई - बहिनों से बचपन
आस पड़ोस के लोगों से भी बहुत कुछ सीखता है बचपन
घर के आंगन में उतरने वाली चिड़िया से भी खेलता है बचपन
किसी किसी घर के आंगन में किसी पिंजरे को भी कौतूहल से देख्ता है बचपन
पिंजरे में बंद मियां मिट्ठू से तुतलाकर आजादी की बोली भी बोलता है बचपन
कहीं चारदीवारी के एक हिस्से में बंधी गाय की पूंछ पकड़ने की चेष्टा भी करता है बचपन
कार्तिक में ब्याही भूरी कुत्ती के नन्हें प्यारे पिल्लों को अजीबोगरीब नाम भी देता है बचपन
पत्ते बदलते देख पेड़ों के मन की पीड़ा समझने की चेष्टा भी करता है बचपन
परियों-सी तितलियों की उड़ानं को भी अपने में समाता है बचपन....
इसीलिए तो ... ताउम्र साथ रहता है बचपन... 

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