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  1. मां, रोटी भी क्यों गोल!
     
    मां, सारी दुनिया देती धोखा
     
    चारों और हो रहा गोलमाल
     
    लंबी, चपटी सब चीजों में भरी पोल
     
    घर में तू बनाती पेट भरने को
     
    मां, वह रोटी भी क्यों गोल!
     
    क्या हम भूख को देते धोखा सच्ची बोल
     
    सीखा तुझसे तोलमोल के बोल
     
    मां, फिर भी सारी दुनिया देती धोखा
     
    मानव-मानव में अपने पराये का जहर घोल
     
    प्रकृति का खजाना स्वार्थ की चाबी से खोल
     
    चांद-सूरज ठंडे-गरम मगर हैं वे भी गोल
     
    मां, ऐसा कर कुछ समझे दुनिया सच्चाई का मोल
     
    मां, सारी दुनिया में हो अपनापन
     
    कहीं न हो कोई परेशान
     
    सब तुझ-से हों निश्छल, ममतामयी
     
    तू दे ऐसी घुट्टी बच्चों को मां
     
    और मां, बना ऐसी रोटी भी जो न हो गोल

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