गर्जना होती मचता द्वन्द्व
By -
BAHUBHASHI
अगस्त 21, 2012
चारों ओर रेत ही रेत
कभी छाते बादल
बरसते और...
थमती रेत
बिजली चमकती
मसले बनते
गर्जना होती
द्वन्द्व मचता
बिखरे स्वप्न इकट्ठा होते
गांठ बंधती
कारीगर रोंधते जमीन
खोदते विगत
नींव हिलती
इमारत ढहती
चलती आंधी
रह जाती
चारों ओर रेत ही रेत
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