झोली भर दुखड़ा अ’र संभावनावां रा मोती

झोली भर दुखड़ा (एक डाक्टर की डायरी)
मूल हिंदी  - डा श्रीगोपाल काबरा 
राजस्थानी अनुवाद - श्री बिहारीशरण पारीक
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, 
झोली भर दुखड़ा अ’र संभावनावां रा मोती
हिंदी सूं  राजस्थानी में उल्थौ कहाणी संग्रै झोली भर दुखड़ा कै मायं भावनावां की लहरां माथै संभावनावां की नाव तैरती दिखै। मायड़ भाषा में मोती जियां चिमकता आखर। नाव में सवार है रोगी अ’र पतवार चलावण रौ काम दूजा पात्र नीं बल्कि कलमकार री आपणी अनूठी शैली करै। श्री बिहारीशरण पारीक इण कहाणियां को उल्थौ कर्यो है जिकी हिंदी में डा श्रीगोपाल काबरा रची अ’र डायरी विधा नै नूवां आयाम दिराया। हालांकि आ डायरी री शिकल में कोनी पण अेक डाक्टर री डायरी मायं इसौ शिल्प रच्यो गयो है जिकै सूं आंख्यां सामै को दरसाव किताब कै पाना माथै पाठक नै दूरदर्शन करावै। संग्रै में मरीज अ’र उण रै परिवारवालां सागै सागै अेक डाक्टर री उण पीड़ री दास्तान है जिकी हंसती खेलती जिनगाणी में आज कै समै री खुशरंग चादर माथै दुख तकलीफ रै मवाद सूं भर्योड़ी बीमारी सूं बणयोड़ो पैबंद है। पीड़ रा भी कितराइ दरसाव होय सकै अ’र इण संग्रै में अेक भाषा सूं दूजी भाषा रा गाबा धारण करता शब्द भांत भांत रै दरसावां नै सामै राखै। झोली भर दुखड़ा संग्रै में कैंसर रोगी अ’र गरभसमापन सागै नसबंदी विसै माथै कुल 15 कहाणियां है। सगळी कहाणियां पाठक नै झकझोर देवण वाली हैं। कहाणीकार संवेदनशील है इण रौ भान कुछैक कथावां में कैंसर सूं जूझतौ थकौ मरीज अ’र उणनै काल कोठरी में खेंच’र ले जावंती यमराज री छियां बिचालै मरीज री जीवणै री ललक बांचता थका पाठकां री आंख सूं बैवतो पाणी करा देवै। गरभपात को अधिकार, कहाणी आज रै समै में समाज री सोच नै उजागर करै तो कंवारी धाय कथा कै मायं नारी मन कै अंधेरे अ’र उंडे कोना के मायं चिलकती रोशनी री लकीर सांप सरीखी लैराती चाल पाठक नै उद्वैलित बणा दैवै। चांदी का पालणा मांय लड्डू गोपाल कहाणी अेकखानी तो नारी मन री पीड़ नै दरसावै तो दूजी ठौड़ गरभपात खातर समाज री सोच नै बतावै पण इणरौ समापन कहाणी परंपरा सूं अलग नीं होवंतों भी नूवंेपण री उजास देवै अ’र प्रभावित करै। सबसूं इलायदा बात है इण कहाणी में अेक डॉक्टर को नजरियो, जिकै सूं कहाणी कै मायं घटना, संवाद अ’र घणासीक पात्र होवतां थका भी आखिरतांई चांदी का पालणा मायं लड्डू गोपाल पाठक री आंख्यां सामै थिरकता दिखै। कहाणी इच्छा मरण कैंसर पीडिृत अेक रोगी रै आखाण रै बहाने सूं जिनगाणी अ’र मौत रौ फलसफो बतावै। आज कै हाईटेक कंप्यूटरीकृत आधुनिक युग के मायं भी कैंसर जिसै रोग री चपेट में पीड़ादायी जीवन सूं हार मानता थका उण भावनावां नै सामी राखै जिकी अेक मिनख दूजै मिनख खातिर कदैई पाल पोस कोनी सकै। इच्छा मरण रै सामाजिक, चिकित्सकीय अ’र कानूनी पक्ष माथै मूल लेखक तो साधुवाद को पात्र है ही, सागै सागै मार्मिक ढंग सूं आखाण करण में अनुवादक बिहारीशरण पारीक जी रै दीर्घ साहित्यिक जीवन रै अनुभव नै भी कहाणी बांचता ताण पाठक खुद ब खुद नमन करै। करोड़ा राजस्थानियां री मायड़ भाषा में हिंदी सूं अनूदित कथा संग्रै समृद्ध राजस्थानी साहित्य में अेक अनमोल मोती मानीजसी। झोली भर मोती। -prastuti  - मोहन थानवी