वींद्र रंमं के लिए एक आंदोलन ऐसा भी...

रंगकर्मियांे की भावनाएं और करोड़ों का मंच उपेक्षित

कला-साधकों की पीड़ा

भरोसे में हरेभरे बाग उजड़ जाते हैं
सोने वालों के स्टेशन पीछे छूट जाते हैं
जागने वालों को दिखती है नटवर की अदाएं
सरकार संवेदनशील हो तो अधिकारी रंगमंच बनाएं
कला धर्मियों के ऐसे आंदोलनों और भावनाओं की अनदेखी संवेदनहीन सरकार और प्रशासन करता रहा है और यह द्योतक है इस बात का कि सुशासन नहीं है, क्योंकि सुशासन में सर्वप्रथम राज सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण कर उन्हें नए आयाम देने में संस्कृतिकर्मियों को प्रोत्साहित करता है।
बीकानेर के अधूरे निर्मित उपेक्षित मंदिर वींद्र रंमं के लिए कला-साधकों ने मंदिर में पूजा-अर्चना को एक आंदोलन का रूप दे दिया किंतु सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ साथ जनप्रतिनिधि तक इस ओर आंखें मूंदे बैठे हैं।  रंगमंच का निर्माण-कार्य पहले तो अधरझूल में छोड़ा गया, फिर आंदोलन के चलते इसमें प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर आशा के दीप प्रज्वलित किए गए किंतु अब फिर से ऐसे हालात सामने आ खड़े हुए कि दूर तक भी रंगमंच की टिमटिमाती रोशनी नजर नहीं आ रही।
सरकार और जन प्रतिनिधियों को यह मालूम होना ही चाहिये कि बीकानेर में करोड़ों का एक मंदिर "वींद्र रंमं" उपेक्षित पड़ा है। यदि मालूम है तो इस ओर कोई प्रयास नहीं होने तथा मालूम नहीं होने की स्थिति में समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की उपेक्षा किए जाने से रंगमंचीय गतिविधियों से राज्य ही नहीं, देषभर में अपनी विषिष्ट पहचान बनाने में कामयाब बीकानेर के रंगकर्मी आहत हैं।
रंगमंच की सर्वाधिक गतिविधियों वाली कला-नगरी में नुक्कड़ नाटक भी चर्चित रहे हैं तो एमएस, रामपुरिया, जैन, डूंगर और कृषि महाविद्यालयों सहित जूनागढ़, रेलवे स्टेडियम, रेलवे प्रेक्षागृह में भी रंग-प्रस्तुतियां दी और सराही जाती रही हैं।   
वींद्र रंमं का निर्माण डेढ़ दशक में भी अधिक समय से अधरझूल में है जो रंगकर्मियों को संताप दे रहा है। ये तो रंगकर्मियों का मनोबल और विश्वास है कि इस अधूरे निर्मित मंदिर में वे लालटेन की रोषनी में  चित्र-प्रदर्षनी लगाकर विरोध प्रकट करते हैं ताकि सरकार तक उनकी आशा की किरण की जानकारी पहुंच सके। सभी को याद है, चार छह साल पहले युवा चित्रकारों ने अधूरे वींद्र रंमं पर लालटेन जला कर चित्र प्रदर्षित किए थे। अपनी आकांक्षाओं को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाते हुए इस ओर से आंखें फिराए बैठी सरकार और स्थानीय प्रशासन को जगाया-चेताया था। दो दशक होने को आए किंतु रंगकर्मियों की आंखांे में आज भी आषा की ज्योति झिलमिला रही है।
आश्चर्य है कि बीकानेर में वींद्र रंमं के निर्माण कार्य पर अब तक करोड़ों खर्च हो चुके हैं मगर रंगकर्मियांे का सपना पूरा नहीं हो रहा। आवास विकास संस्थान और सांसद कोटे से राशि सहित सरकारी स्तर पर भी बजट की सुविधा के बावजूद एक निर्माण कार्य के ये हाल हैं। किसी समय सार्वजनिक निर्माण विभाग ने इसके लिए 1.47 करोड़ के खर्च का अनुमान बताया था और आज इससे कहीं अधिक राशि व्यय होने के बावजूद काम पूरा नहीं हो रहा।
साहित्यकारों ने भी वींद्र रंमं के अधूरे निर्माण पर क्षोभ प्रकट किया। जनकवि हरीश भादानी के सान्निध्य में भवानी शंकर व्यास ‘‘विनोद’’, लक्ष्मीनारायण रंगा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार सड़कों पर उतरे। इस प्रकार प्रशासन का ध्यानकर्षण करने में राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के सदस्य रहे वरिष्ठ रंगकर्मी मधु आचार्य ‘‘आशावादी’’ सहित रंगमंच अभियान समिति के ओम सोनी, अनुराग कला केन्द्र के कमल अनुरागी, सुधेश व्यास, संकल्प नाट्य समिति, रंगन, अर्पण आर्ट सोसायटी, नट, साहित्य संस्कृति संस्थान, नेषनल थिएटर, सरोकार आदि कला-संस्थाओं के पदाधिकारियों आनंद वि आचार्य, विपिन पुरोहित, दलीप भाटी, प्रदीप भटनागर सहित नगर के हर  सृजनधर्मी ने रंगमंच के अधूरे निर्माण को पूरा कराने के लिए प्रयास किए हैं। इनमें अनेकानेक वे रंग-कला प्रस्तुतियां भी शामिल हैं जो वींद्र रंमं निर्माण स्थल पर बिना सुविधाओं के भी रंगप्रेमी दर्षकों के सम्मुख दी और सराही गई।
कला धर्मियों के ऐसे आंदोलनों और भावनाओं की अनदेखी संवेदनहीन सरकार और प्रशासन करता रहा है और यह द्योतक है इस बात का कि सुशासन नहीं है, क्योंकि सुशासन में सर्वप्रथम राज सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण कर उन्हें नए आयाम देने में संस्कृतिकर्मियों को प्रोत्साहित करता है। - मोहन थानवी