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रोने से रोजी नहीं बढ़ती

रोने से रोज़ी नहीं बढ़ती   अनथक कर्म करने के बावजूद वांछित प्रतिफल नहीं मिलने की शिकायत करने वाले बहुतेरे होंगे लेकिन कोई उनसे पूछे क्या रोना रोने से रोज़ी बढ़ती है ! दरअसल मैनेजमेंट कोर्स, अध्यात्म और व्यक्तित्व विकास जैसे प्रशिक्षणों में सकारात्मक विचारों की महत्ता बताई ही जाती है। ये सकारात्मक विचार-पाठ कोई आज के ईजाद पाठ्यक्रमों में प्रयुक्त नहीं होते बल्कि ‘‘उस्ताद-शागिर्द’’ काल से भी बहुत - बहुत पहले ‘‘गुरु-शिष्य’’ युग से सकारात्मकता को महत्व मिला हुआ है। पुराण कथाओं, ऐतिहासिक एवं लोककथाओं में भी सकारात्मक विचार अपनाने संबंधी सीख देने वाले उद्धहरण भरे पड़े हैं। आज का युग कल कारखानों में सिक्के ढालता है तो कभी श्रमिक वर्ग को खेत खलिहान में पसीना बहाकर या व्यापार के लिए दुरूह यात्राएं कर सेठ साहूकारों के लिए ‘‘गिन्नियों की थैलियां’’ भर लानी होती थी। श्रमिक वर्ग तब भी वांछित लाभ से वंचित रहता और आज भी कमोबेस ऐसा होता है। साथ ही यह भी तय है कि जगह जगह ऐसा रोना रोने वाले को लाभ भी बढ़ा हुआ नहीं मिलता। अर्थात युग और काम का रूप बदल गया लेकिन व्यवस्था ले देकर वहीं की वहीं रही ! प्रवृत्ति

इनामी सिंधी नाटकनि जा किताब छपजणु खपनि

इनामी सिंधी नाटकनि जा किताब छपजणु खपनि ajmernama.com /guest-writer/150323/ associate बीकानेर।  जातल-सुंञातल सिंधी साहित्यकार, आलोचक अहमदबाद जे जेठो लालवानी चयो त राजस्थान सिंधी अकादमी जयपुर सां गडोगडु तमाम संस्थाउंनि पारां मेड़यल चटाभेटीअ में इनाम खट्यल सिंधी नाटकनि खे किताबी शिक्ल में पाठकनि ऐं रंगजगत जे साम्हूं आनणु खपे। ईआ जिम्मेदारी नाटकनि सां बावस्ता सभिनी लेखकनि, कलाकारनि जी आहे। जेठो लालवानी राजस्थान सिंधी नाटक सब्जैक्ट ते साहित्य अकादमी मुंबई, विशाल सिंध समाज सांस्कृतिक मंच बीकानेर ऐं सुजाग सिंधी मासिक जे गड्यल आयोजन जे समापन सत्र जी अध्यक्षता कंदे मौजूद रंग-प्रेमिनी खे संबोधित कनि पया। आयोजन बाबत पहिंजो रायो रखंदे वरिष्ठ साहित्यकार भगवान अटलानीअ चयो त हालात मुजिबु सभिनी खां अगु पहिंजी भाषा, कला, साहित्य ऐं संस्कृतिअ खे बचाइण लाइ कदम खणण जरूरी आहिनि। नाटक नवीस ऐं लेखक भाषा जी गरिमा जो बि ध्यानु रखंदे लिखनि ऐं नईं टेहीअ खे सिंधु संस्कृतिअ जे सुहिणनि रंगनि सां वाकिफु कराइनि। छह नाटकनि जो वाचन कयो वियो ऐं बाहिरियूं आयलि सिंधी साहित्यकारनि पहिंजा परचा पेश कया। परचनि जे

अंजाम

धैर्यवान काठ की हाँडी बार बार खुद को आग से परे रहकर जलने से बचती और खिचड़ी पकाकर स्वार्थी को देती रही। एक दिन उसे लोगोँ को बेवकूफ बनाने वाले स्वार्थी पर हँसी आ गई। उसने स्वार्थी की खिचड़ी नष्ट कर अपनी महत्ता बताकर ख्याति पाने की गरज से आग से दूरी घटा ली। वो अधिक देर मुस्करा न सकी और जल गई। अट्टृ – काठ की हाँडी क्योँ मुस्कराई? पट्टृ – स्वार्थी को हदेँ पार करने मेँ लाज न आती देख। अट्टृ – फिर जली क्योँ? पट्टृ – खुद भी स्वार्थी होकर। 00000000000 अट्टू बीमार पत्नी पट्टू की तीमारदारी करते करते खुद बीमार हो गया। सेवा की बारी पत्नी की थी। पट्टू – ऐ जी उठो, नीँद की गोली खाए बिना ही सो गए।
बालू की चिट्ठी - मेघ के नाम इस तरह बूंद बूंद रिसते बरसते पर उमस करते हो ? मेघ तुम थार के जीवन पर कुठाराघात करते हो ? आशाओं की पैदावार के बीज बालू-कणों में फूटने से पहले तेज नागौरण के वेग से इधर के उधर पहुंच जाते और तुम मेघ... तेजी से उन्हीं के साथ थार पर मंडराते कहीं के कहीं क्यों निकल जाते ? है तो यह अन्याय तुम्हारा तुम्हारी निष्ठुरता से यहां का ‘‘धन’’ प्यासा रह जाता धन का अमृत बना दिया जाता मावा लकड़ियां और टहनयिां झाड़ियां फोग भी भेंट भट्टियों के हो जाते चूल्हा धुंआता न धुंआता मरुस्थल की हवा धुआं जाती मेघ तुम जब धुआं बन जाते इस अफसोस में हळधर की आंख भी धुआं जाती सावन-भादौ की गोठें जब यहां पुकारती प्रवासियों को मेघ तुम क्यूं नहीं गरजते सचमुच मेघ... तुम जब बरसते हो गांव-गांव औ’र शहर शहर एक चमन-सा बन इसी मिट्टी में फनां हो जाने को उकसाते सचमुच ! मेघ ! किंतु तुम निष्ठुर हो नहीं बरसते तो नहीं बरसते रिसते तो फकत रिसते हो इस तरह बूंद बूंद रिसते बरसते पर उमस करते हो ? मेघ तुम थार के जीवन पर कुठाराघात करते हो ?
ओला गोला  मीठा शोला
वरिष्ठ साहित्यकार श्री राधाकिशन चांदवानी
712 ई मेँ सिँध की नारीशक्ति का सँघर्ष जब ब्राह्मण राजा दाहर युद्ध के मैदान मेँ था तब सिँध के क्या हालात थे…? अलोर सिँध का किला 1300 साल बीतने के बाद भी अपने आप मेँ कई रहस्य समाए है। क्या किले मेँ सुरँग भी है? हिँगलाज माता व नृसिँह जी का मँदिर है। सिँधु सँस्कृति मेँ नारी को महान दर्जा प्राप्त है। नारीशक्ति ने अपने राष्ट्र के लिए दुश्मन का सामना कैसे किया कि आज भी उसे याद कर सलाम किया जाता है। पूजा जाता है। इन सब के साथ 712 ई मेँ सिँध की नारीशक्ति का सँघर्ष राजमाता सुहँदी महारानी लाड़ी माई पदमा का द्वन्द्व शामिल है Sindhi Novel Kooch Ain Shikast मेँ। -  मोहन थानवी

रेत का जीवन

रेत का जीवन रेत का भी जीवन है अपना संसार है समाई धूप की गर्मी है आसपास बिखरे कांटे हैं कहीं रेत पर गुलिस्तां बने कहीं ताल तलैया खुदे कहीं गगनचुंबी इमारतें हैं खेत किनारे रेललाइन है इसी रेत में पनपे पेड़ हैं मंदिर इसी पर खड़े मस्जिद इस पर बनी गुरुद्वारे-चर्च भी रेत पर घर भी बनाये हैं लोगों ने रेत पर सपने भी बुने हैं लोगों ने रेत पर हवा जब बहती है तेज रेत भी उड़ती है रेत पर लहराता जीवन संवरता रहता नश्वर यह संसार रेत में ही मिल जाता रेत का ही जीवन है

जांबाज़ बेटियां : सूर्य परमाल

सिंधी नाटक जांबाज़ धीअरु : सूर्य परमाल - Mohan Thanvi सीन 1 कासिम जो दरबार सूत्रधार: दाहरसेन जो सिन्धु जे लाय वीरगति प्राप्त करणि जो समाचार बुधी रनिवास में महाराणी लादीबाईअ तलवार हथनि में खरणि जो ऐलान कयो। इयो बुधी सिन्धुजा वीर जवान बीणे जोशो-खरोश सां दुश्मन जे मथूं चढ़ी विया। महारानी लादीबाई उननि जी अगुवा हुई। उनजो आवाज बुधी दुश्मन जे सैनिकनि जी हवा खराब पेई थे। ऐहड़े वक्त में कुछ देशद्रोही अरबनि सां मिली विया। महाराणीअ जे सलाहकारनि उनखे बचणि जा रस्ता बुधाया पर सिन्धुजी उवा वीर राणी बचणि जे लाय न बल्कि बियूनि खे बचायणि जे लाय जन्म वड़तो हूयो। उन दुश्मन जे हथ लगणि खां सुठो त भाय जे हवाले थियणि समझो। सभिनी सिन्धी ललनाउनि मुर्सनि जे मथूं दुश्मन जो मुकाबलो करणि जी जिम्मेवारी रखी। पाणि जौहर कयवूं। इन विच इनाम जी लालच एं पहिंजी जान बचायणि जे लाय देशद्रोहिनि राजकुमारी सूर्यदेवी एं परमाल खे कैद करे वड़तो। पर जुल्मी वधीक हूया। उवे किले में घिरी आहिया उननि कासिम जे दरबार में बिनी राजकुमारियूनि खे पेश कयो- कासिम: सिन्धु जे किले ते फतह करणि में असांजा घणाइ जांबांज मारजी विया आह

ये रास्ते हैं जीवन के...

ये रास्ते हैं जीवन के... पुल से स्टेशन विहंगम दिखा । तीनों प्लेटफार्म मानो छू सकता था । वहां गाड़ी की प्रतीक्षा में मौजूद हुजूम से बतिया सकता था । देखते देखते प्लेटफार्म नं एक पर गाड़ी आन पहुंची। कोई खास हलचल नहीं । एक दो ही लोग गाड़ी में जा बैठे । ये पैसेंजर थी। गांव जाने के लिए जरूरी और मजबूरी में ही लोग इसमें यात्रा करते हैं । तभी तीन नं पर गाड़ी के पहुंचते पहुंचते लोग डिब्बों में घुसने लगे । पलक झ पकी न झपकी 100-200 लोग गाड़ी में बैठे दिखे । ये बड़े शहरों में जाने वाली एक्सप्रेस है । इससे लोग बिना मकसद दिखावा करने या सिर्फ घूमने के लिए भी जाते हैं । दो नं प्लेटफार्म लऑगों के होते हुए भी शांत दिखा । वहां गाड़ी पहुंची तो कुछ देर तक लोग डिब्बों में झांकते रहे । पसंदीदा जगह दिखी तो 10-15 लोगों ने अपना सामान वहां जमाया फिर खुद भी बैठ गए । ये गाड़ी तीर्थयात्रा स्पेशल थी । इसमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर जीने वाले ही यात्रा करते हैं । अपना सामान यानी विचारों का आदान प्रदान कर तीर्थ करते हैं । पुल से आहिस्ता आहिस्ता उतर कर नाचीज ने अपना सामान इंजन से चौथे डिब्बे में जमा लिया । -

बिझनि जी उंञ अंञणु बाकी आहे / थानवी की कविताओं में परंपराओं के साथ आज की बात / मोहन थानवी के काव्य संग्रह ‘‘हालात’’ का लोकार्पण

*BAHUBHASHI* *खबरों में बीकानेर*🎤 🌐   ✍️   🙏 मोहन थानवी 🙏   #Covid-19 #pm_modi #crime #बहुभाषी #Bikaner #novel #किसान #City #state #literature #zee Khabron Me Bikaner 🎤  सच्चाई पढ़ें । सकारात्मक रहें। संभावनाएं तलाशें ।   ✍️  काव्य संग्रह ‘‘हालात’’ का लोकार्पण थानवी की कविताओं में परंपराओं के साथ आज के समय की बात बीकानेर 13 जुलाई,      नवयुवक कला मण्डल की ओर से आज विश्वास वाचनालय में बहुभाषी साहित्यकार मोहन थानवी के नवीनतम कविता संग्रह हालात का लोकार्पण अतिथियांे ने किया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुवे मानुमल प्रेमज्याणी ने कहा कि नई पीढी सिंधी साहित्य से परिचित हो इसके लिये व्यापक प्रयास किये जाने चाहिये । मुख्य अतिथि सिंधी रचनाकार महादेव बालानी ने कहा कि थानवी ने सिंधी कविता में परम्पराओं के साथ आज के समय की बात को गंभीरता के साथ कहा है। मुख्य वक्ता हासानंद मंगवानी और किशन सदारंगानी ने कहा कि थानवी की कवितायें अपने समय के साथ कदम ताल करती हई सिंध के वैभवशाली अतीत से भी परिचित करवाती है । लोकार्पित कृति हालात पर पाठकीय
क्रिकेट: और भी हैं मुकाम । अंपायरिंग । सुरेश शास्त्री। आज से 23-24 साल पहले जब मैं उनसे पहली बार मिला था । उस समय भला हम यह कैसे जान सकते थे कि हैदराबाद में 30 दिसंबर 2013 का दिन उनके अंपायरिंग के कैरियर में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। वह दिन शास्त्री जी को 100 से अधिक प्रथम श्रेणी के मैचों में अंपायरिंग करने वाले पहले अंपायर बनने का सौभाग्य प्रदान करने वाला दिन है। अंपायर सुरेश शास्त्री 90 के दशक में एक बार बीकानेर आए थे। रेलवे स्टेडियम में क्रिकेट का मुकाबला हुआ था, रणजी। अंपायर सुरेश शास्त्री से अथवा क्रिकेट खेल से मेरा कोई सीधा नाता नहीं रहते हुए भी जब शास्त्री से मुलाकात हुई तो वे दिल में उतर गए और आज तक हमारे संबंध कायम हैं। सुरेश जी से मेरी मुलाकात आकाशवाणी बीकानेर के लिए श्री कुलविंदर सिंह कंग द्वारा लिए गए साक्षात्कार की प्रक्रिया के दौरान हुई। मैं अस्थाई कंपीयर/उद्घोषक के तौर पर आकाशवाणी से जुड़ा हुआ था, श्री कंग को जब बताया कि बीकानेर में अंपायर सुरेश शास्त्री जी आए हुए हैं तो उन्होंने शास्त्री जी की साक्षात्कार के लिए स्वीकृति लेने व उन्हें आकाशवाणी स्टूडियो तक लाने का

मां के चरणों में मिला स्वर्ग

मां के चरणों में मिला स्वर्ग मां के वरदहस्त से हर्ष मां से पाया धरा ने धैर्य मां से देवों ने ली किलकारी मां ही देवी जगत जननी मां बिन नहीं स्वर्ग में सुख मां बिन नहीं हर्ष का स्पर्श मां का आशीष ही गर्व मां का आंचल ही सुख मां ही आन बान और शान मां ही देती ज्ञान मां गुरु मां ही भगवान मां ही जीवन की मुस्कान मोहन थानवी 13 मई 2012