रिकॉर्ड तो दर्ज होगा ही, सरकार इनकी बने या उनकी
हर चुनाव रच देता है नया शब्दकोषराज्य विधानसभा की 199 सीटों के लिए 25 नवंबर को मतदान पूर्ण हो गया अब इंतजार है तीन दिसंबर का, जिस दिन जनता भाग्य विधाता के रूप में किए गए फैसले से पर्दा उठाएगी।
इस बार राज्य विधानसभा का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच ही रहा। इस बार भी चुनाव में मतदाताओं को कुछ नए शब्द सुनने को मिले।
पिछले चुनावों में हमने रावण, राक्षस, अहंकारी, पप्पू, पोपटलाल, जैसे शब्द सुने तो इस बार पनौती जैसा शब्द चर्चा में रहा। पनौती कौन किस के लिए होगा यह भी तीन दिसंबर को ही पता चलेगा, परंतु इस बार हुए अच्छे मतदान ने कुछ नए राजनीतिक संकेत दिए हैं। मतदाताओं का ज्यादा उत्साह किसी भी दल के लिए लाभदायक तो किसी के लिए परेशानी का कारण बन सकता है, भले ही भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने ज्यादा मतदान को अपनी अपनी पार्टी के लिए लाभदायक बताते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनने का दावा क्रिया है।
राजनीति में निराशा का भाव होना भी नहीं चाहिए खैर...।
राजस्थान में इस बार कांग्रेस की तरफ से रिवाज बदलने का दावा किया जा रहा है तो भाजपा राज्य में राज बदलने का दावा कर रही है। वर्ष 1998 के चुनाव से रिवाज चल रहा है एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा, इस बात को ध्यान में रख कर ही रिवाज और राज बदलने की बात हो रही हैं।
चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस के राज्य प्रभारियों ने मतदाताओं का आभार प्रकट करते हुए अपनी अपनी पार्टी को सरकार बनने का दावा भी ठोक दिया तो तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में वसुंधरा राजे ने देवी देवताओं की शरण में जाकर फिर से कुर्सी पाने की कामना की है।
यदि राज्य में भाजपा की सरकार बनती है और राजे का राज आता है तो वे प्रदेश भाजपा की पहली ऐसी मुख्यमंत्री होंगी जिन्हे अपने कार्यकाल पूर्ण करने का सौभाग्य मिलेगा। भैरोंसिंह शेखावत तीन बार मुख्यमंत्री बने पर कार्यकाल एक बार ही पूरा कर पाए। 1977 में बनी उनकी सरकार जनता पार्टी की टूट के कारण तो 1990 में दूसरी बार बनी सरकार राम मंदिर आन्दोलन के कारण शहीद हो गई।
वर्ष 1993 में तीसरी बार बनी सरकार ही कार्यकाल पूरा कर पाई। जबकि अशोक गहलोत ने अपने सभी कार्यकाल पूरे किए। इनसे पहले मोहन लाल सुखाड़िया भी लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं।
- उमेंद्र दाधीच, कंचन केसरी
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