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किन्नों की बदौलत सन्तरा उत्पादन में राजस्थान का चौथा स्थान

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किन्नों की बदौलत सन्तरा उत्पादन में राजस्थान का चौथा स्थान 

किन्नों संवाद-2021 वर्चुअल कार्यक्रम

बीकानेर,14 जून।स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान केन्द्र, श्रीगंगानगर द्वारा आयोजित किन्नू संवाद में किसानों सहित 100 से अधिक प्रतिभागियों ने उपस्थिति दर्ज कराई। विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. आर.पी. सिंह ने किन्नों की बागवानी के प्रोत्साहन में प्रयासरत कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान एवं प्रसार वैज्ञानिक तथा कृषि अधिकारी एवं किन्नों कृषकों से संवाद करते हुए कहा की भारतवर्ष में उगाये जाने वाले विभिन्न फलों में नींबू प्रजाति के फलों का महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें विटामिन-ए, बी, सी एवं खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। नींबू वर्गीय फलों में किन्नू फल की एक अलग पहचान है। यह फल राजस्थान, पंजाब, हरियाण, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है, लेकिन राजस्थान के श्रीगंगानगर क्षेत्र में उगाये गये फलों का स्वाद, रंग एवं गुणवत्ता उत्तम है, जिसके कारण इसकी राजस्थान के अलावा देश के विभिन्न बड़े शहरों में श्रीगंगानगर के किन्नों की मांग लगातार बढ़ रही है। राजस्थान में वर्तमान 5.81 लाख मैट्रिक टन फलोत्पादन प्राप्त होता है। राजस्थान में फलों के कुल क्षेत्रफल का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (गंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले) किन्नों के उत्पादन में अपना सर्वोपरि स्थान रखता है। इन जिलों में लगभग 16500 हैक्टेयर क्षेत्र में 1.50-1.90 टन प्रति हैक्टेयर उत्पादकता के साथ कुल 1.99 लाख टन किन्नों फल का वार्षिक उत्पादन लिया जाता है। देश के सन्तरा उत्पादन में राजस्थान राज्य की सहभागिता 7.0 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर है। श्रीगंगानगर जिलें में नीबूंवर्गीय फलों-किन्नों, मौसमी, माल्टा, नींबू सहित 12000 हैक्टेयर में इनके बाग लगे है। खंड के दूसरे जिला हनुमानगढ़ में इन फलों के अन्तर्गत लगभग 2400 हैक्टेयर क्षेत्रफल है। किन्नों की उत्पादकता 150-200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। किन्नों के वर्तमान उत्पादन स्तर को और अधिक बढ़ाये जाने की बहुत संभावना है। उत्पादकता बढ़ाने में पौषक तत्वों एवं जल प्रबन्धन के साथ-साथ इसमें लगने वाले कीट एवं रोगों से इसका बचाव जरूरी है। फाइटोप्थोरा गलन/गोदांति रोग, किन्नों के बागों में सबमें अधिक नुकसान पहुँचाते है, जिससे कभी कभी पूरा बाग नष्ट होने के कगार पर पहुँच जाता है, साथ ही अधिक उत्पादन की स्थिति से विपणन की समस्या, कम मूल्य व भण्डारण जैसी समस्या भी किन्नों कृषकों को उठानी पड़ सकती है। किसान भाईयों को भारत सरकार द्वारा घोषित एफ.पी.ओ. योजना का लाभ लेना चाहिये तथा किन्नों उत्पादक संगठन बनाकर अपने स्तर पर इसका विपणन करने से किसानों को अधिक कीमत मिलने की संभावना रहेगी तथा विपणन में बिचैलियों का प्रभाव भी कम होगा। इसी अवसर पर अनुसंधान निदेशक डॉ पी एस शेखावत ने बताया कि जिले में 45% बागान बूंद बूंद सिंचाई पद्धति द्वारा सिंचित है यदि किन्नो उत्पादन कृषक इसकी बागवानी वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करतेेे हुए करें तो इससे प्रति इकाई क्षेत्रफल मेंं अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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