असबाब में असबाब, एक चंग एक रबाब
आपके सान्निध्य में मन की बातें खुद ब खुद कलम से कागज पर उतरने लगती है। बड़ों ने अपने अनुभवों के इशारों में सच ही कहा है, पुस्तक सदृश्य और कोई मित्र नहीं। इसी तर्ज पर पाठक भी उसी श्रेणी के मित्र हैं जिस श्रेणी में पुस्तक को मित्र माना गया है। मित्रों में दिल की बात तो जुबां पर आती ही है। यहां माध्यम कलम है। बात कागज पर उतरती है। कलाकार, कलमकार की पूंजी और होती ही क्या है ! असबाब में असबाब, एक चंग एक रबाब। बस। हमारा यही संसार है। यही दौलत। कलम। कागज। दवात। यूं चंग डफ सदृश्य मंजीरा लगा हुआ वाद्य होता है। रबाब ऐसा वाद्य होता है जो सारंगी जैसा लगता है। इस साजोसामान से कलाकार, साहित्यकार आपसे, पाठकों से मित्रता का दम भरता है। पाठक भी बखूबी मित्र धर्म निर्वहन करते हैं। संबल प्रदान करते हैं। दिल की बात कागज के माध्यम से पाठक मित्रों तक पहुंचाने की बेमिसाल बानगी हमारे सामने ही है। सूचना और जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी एवं संपादक श्री मनोहर चावला जी ने भी दिल की बातें यहां साझा की है। चार फरवरी 2013 के अंक में भी। उन्होंने पत्रकारिता और सेवा अवधि सहित अपने दाम्पत्य जीवन के सफल 44 से अधिक वर्षों में कदम कदम पर साथ निभाने वाली आदरणीय भाभी जी ( श्री चावला जी की धर्म पत्नी ) को वह सम्मान प्रदान किया है जिसकी वे हकदार हैं। बड़ों के यही आदर्श, ऐसी ही विनम्रता, असीम धैर्य ही तो युवा पीढ़ी को संस्कारित करते हैं। संस्कार ही हमारी असल संपत्ति है। परंपराएं वाहक। और हमारे बीकाणा की साहित्य-संस्कृति ने सदैव नव पल्लव पुष्पित किए हैं। परंपराओं से युवा पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त किया है। नगर में पत्रकारिता का इतिहास भी गौरवशाली है। बीती सदी में एक समाचार के प्रकाशन मात्र से पत्रकारिता के क्षेत्र में हुक्मरानों की दखलअंदाजी का हवाला श्री चावला जी की कलम से मिला। तत्कालीन जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अमले के जोर जबर संबंधी इस घटना की जानकारी युवा पीढ़ी समेत कई अनुभवी कलमकारों को भी पहले से हो, इसमें संशय है। संशय इसमें भी कि स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पत्रकारों की जानकारी भी दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी को है। क्योंकि किसी पाठ्यक्रम में भी शामिल नहीं है। इस विषय पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावा शायद ही कभी चर्चा होती हो। हमारा असबाब में असबाब यही गौरवशाली इतिहास ही तो है। इसका संरक्षण हमारा दायित्व। असबाब कायम रहे। इसमें वृद्धि होती रहे। ऐसे प्रयासों के लिए अभिलेखागार की सराहना लाजिमी है। अभिलेखागार की ऐसी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए निदेशक डा महेंद्र खड़गावत को साधुवाद।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

write views